Saturday, September 26, 2009

फ़ुटकर शे‘र नं-८-श्याम सखा





मोम की देह थी और धागे की थीं अस्थियाँ
रात भर जोहती बाट थीं नैनों की पुतलियाँ



मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. बिम्ब विधान बहुत प्यारा है।
    दुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
    ( Treasurer-S. T. )

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  3. खुबसूरती अभिव्यक्ति ..........
    मैने कुछ यह कहने कि कोशिश करी है..........
    जहाँ भावनाये रोज़ अर्थी चढती थी
    अरमान शीशे से टुटकर बिखर जाते थे,

    फिर भी वह उस मकान को घर बनाने जुटी थी

    क्योकि उसके बाप का घर कुछ ज्यादा ही घर था!

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  4. नैनों की पुतलियों को हमारा आभार.

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  5. वाह वाह जी, क्या बात है, बहुत सुंदर.
    धन्यवाद

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  6. खूबसूरत शेर ........... कमाल का लिखा है .......

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  7. wah shyaam ji, shama ko kis andaaz se manvikaran kiya hai, bahut khoob.

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  8. अच्छा शेर है बिलकुल आपके अनुरूप

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  9. बहुत बढ़िया शेर कहा आपने.
    सही प्रतिमान. हार्दिक बधाई इस शेर के लिए और दशहरे के भी लिए.

    कोई नाराज़गी, या और कुछ, आजकल आप मेरे ब्लाग पर आ नहीं रहे हैं.............

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  10. वाह क्या कमाल का शे'र कहा है...
    बहुत -बहुत बधाई.

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  11. वाह ....!!!!!!!!!!!!!!

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