Monday, September 14, 2009

खुद से यह गद्दारी मत कर- gazal shyam skha shyam

हम जैसों से यारी मत कर
खुद से यह गद्दारी मत कर

तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर

रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें खारी मत कर

हुक्म उदूली का खतरा है
फरमां कोई जारी मत कर

आना जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर

खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर

16 comments:

  1. श्याम जी लेकिन लोग कहा समझते है ,
    आप ने कविता बहुत सुंदर लिखी.
    धन्यवाद

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  2. बेहतरीन गज़ल!!


    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    कृप्या अपने किसी मित्र या परिवार के सदस्य का एक नया हिन्दी चिट्ठा शुरू करवा कर इस दिवस विशेष पर हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का संकल्प लिजिये.

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  3. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...शुभकामनायें ..!!

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  4. आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.

    आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

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  5. किस शेर की तारीफ की जाए, पूरी गजल ही नायाब है.

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  6. आदरणीय श्याम जी ,
    आपकी बहुत सी गजलों ा प्रभाव इतना प्रबल होता है की की वेह मस्तिषक में एक छाप छोड़ जाती है ...यह गजल भी उन में से ही एक है ....मैं इसे पहले भी पढ़ चुकी हूँ ...इ कविता में ..या फिर आपके ब्लॉग पर ... दुबारा पढ़वानें के लिए बहुत बहुत ुक्रिया .
    सादर ,
    सुजाता

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  7. श्याम जी बेहतरीन ग़ज़ल कही है...सारे के सारे शेर कमाल के हैं...दाद कबूल करें
    नीरज

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  8. आदरणीय श्याम जी .......... कमाल की ग़ज़ल, हर शेर में जीवन का गहरा अनुभव छिपा है ......हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं

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  9. बहुत प्यारी गजल कही है आपने।
    { Treasurer-S, T }

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  10. बहुत सुन्दर गजल है

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  11. प्रणाम दादा
    हालांकि ये ग़ज़ल पहले भी पढी है लेकिन टिप्पणी का मौका आज आया है. बेहतरीन ग़ज़ल हुई है.
    सच कहने की ठानी है तो,
    कविता को दरबारी मत कर.
    वाह!वाह!

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  12. खूब पढ़ा है आपकी इस ग़ज़ल को और हर बार खुल के दाद दी है मैंने।

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  13. सच कहनी की ठानी है तो
    कविता को दरबारी मत कर।
    --यह शेर बहुत अच्छा लगा।
    --देवेन्द्र पाण्डेय।

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  14. सुंदर रचना।

    ख़ुद आकर ले जायेगा 'वो'

    जाने की तैयारी मत कर।

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  15. श्याम जी बहुत उम्दा बात कही है आपने, बहुत सुंदर रचना... मजा आया पढ़कर॥ लाजवाब लिखते रहिये..

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  16. बहुत अच्छी ग़ज़ल है .तीसरे शेर के साथ अपना अक शेर याद आ गया.सुनेंगे?-तेरे अपने भी............
    मेरे घर को आग लगनेवाले सुन
    तेरा घर भी तो मेरे घर सा होगा-
    और आपका एक शेर-खुद आकर ले जायेगा............से अपना ये शेर -
    'मौत आये तो बेझिझक चल दें
    इतनी पुख्ता'किरण' तयारी हो- यद् आ गया.
    पुनः बधाई!

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