Monday, January 4, 2010

हम तुम्हारे है नहीं कुछ भी मगर

हम तुम्हारे है नहीं कुछ भी मगर
गर मिलें तो जिन्दगी जाये सँवर

बाँकी चितवन और थी तिरछी नजर
चढ़ गई तलवार ज्यों हो सान पर

घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र

अब महाभारत रुके कैसे भला
आ खड़े हैं जब सभी मैदान पर

भूलना मुमकिन कहाँ है दोस्तो
देखना उसका मुझे यूं आँख भर

ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
नींद लेकिन बिक रही है दाम पर

कौरवों में पाँडवो में था समर
आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर



मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/

19 comments:

  1. अब महाभारत रुके कैसे भला
    आ खड़े हैं जब सभी मैदान पर....
    behtreen.

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  2. अब महाभारत रुके कैसे भला
    आ खड़े हैं जब सभी मैदान पर

    कौरवों पाँडवो में था समर
    आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर

    वाह ! बहुत खूब!!

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  3. "ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
    नींद लेकिन बिक रही है दाम पर"

    बहुत ही खूबसूरत है !

    नव वर्ष की शुभकामनायें !

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  4. all lines are superb.....
    I'm unable to comment on this awesome post.....

    Congrats!!!! & Wish U Happy New Year.....

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  5. बहुत उम्दा!!



    ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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  6. ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
    नींद लेकिन बिक रही है दाम पर

    बहुत सुन्दर।
    नव वर्ष की शुभकामनायें।

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  7. घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
    रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र

    behatareen shyam ji, badhaai.

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  8. ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
    नींद लेकिन बिक रही है दाम पर
    waah bahut hi khubsurat sher hai..
    bahut badhiya gazal!

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  9. ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
    नींद लेकिन बिक रही है दाम पर

    वाह श्याम जी नए तेवर का शेर है...बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई
    नीरज

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  10. अद्भुत, गजब, कमाल!! क्या कहूं, निःशब्द हो कर रह गया हूँ. इस गजल की धार में मैं बह गया हूँ.
    महाभारत वाले दोनों शेर तो अपना मकाम रखते ही हैं लेकिन नींद और ख्वाब वाले शेर ने तो होश उड़ा दिए.
    आपने शायद यह तय कर लिया है कि गजल के मैदान में किसी को भी टिकने नहीं देंगे.
    बन्धु, इस कामयाब गजल के लिए मुबारकबाद तो दे ही रहा हूँ लेकिन एक प्रार्थना के साथ--हम जैसों पर रहम करें. थोडा निचली सतह पर भी कभी लिख लिया करें.

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  11. कौरवों पाँडवो में था समर
    आ गया इल्जाम लेकिन ‘श्याम‘पर
    bahut khoob zanaab...

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  12. बहुत बढ़िया गजल है। बधाई।
    घटता बढ़ता चाँद तो है बेवफ़ा
    रात फ़िर भी है उसी की हमसफ़र

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  13. ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
    नींद लेकिन बिक रही है दाम पर

    waah bahut kamaal ka sher hai
    shaandaar gazal

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  14. ख्वाब तो हैं मुफ़्त में ही बँट रहे
    नींद लेकिन बिक रही है दाम पर


    वाह ... क्या बात है
    बहुत सुन्दर ... लाजवाब ग़ज़ल
    शुभ कामनाएं


    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    क्रियेटिव मंच

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  15. महाभारत से हटकर, गजल के अन्‍य शेर सशक्‍त हैं।

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  16. बेहतरीन ग़ज़ल भाई जी.... आप हमेशा ही बहुत बेहतरीन कहते हैं.. बधाई

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