Saturday, July 17, 2010

सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें-gazal

मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी

तो आके फिर तू मिल अकेले में    यूं  हमसे जिन्दगी




हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत माँगोगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी




हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी



सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी




नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी


हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी





मुतफ़ाइलुन= चार बार











मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

8 comments:

  1. नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
    इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
    वाह जी बहुत सुंदर. धन्यवाद

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  2. सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
    पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
    acchi ghazal.....badhai!

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है श्याम जी ।
    क्या बात है , अब कुछ लिखना कम हो गया है ।

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  4. shyam ji, aapki 2 gazal padi fursat me sari paduga. bahut hi sundar lekhan.

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  5. नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
    इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
    जख़्म ही तो जिन्दगी से रूबरू करवाते है
    सुन्दर

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  6. Waah...bahut hi sundar gazal....

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