Tuesday, December 3, 2013

मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर- gazal by shyamskha shyam

मेरे गम का क्या सबब है क्या तुम्हे मालूम है
दर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम है

मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर
सादगी उसकी गज़ब है क्या तुम्हे मालूम है

इश्क है गहरा समन्दर पार जाता है वही
डूबने का जिसको ढ़ब है क्या तुम्हे मालूम है

जानता हूं सुध कयामत के दिवस लोगे  मेरी
पर जरूरत आज अब है क्या तुम्हें मालूम है।

सायबानो में रकीबों के तेरा हो जिक्र जब
जान जाती मेरी तब है क्या तुम्हे मालूम है

तुम जमाने से छुपा लोगे सखा अपने गुनाह
देखता रहता है वो सब है क्या तुम्हे मालूम है

मीरा राधा गोपियां उद्धव सुदामा गर बनो
श्याम मिलता यार तब है क्या मालूम है
 

मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

9 comments:

  1. मेरे गम का क्या सबब है क्या तुम्हे मालूम है
    दर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम है

    बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय

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  2. हम सुदामा बन गये थे श्‍याम ही बचता फिरा
    मतलबी रिश्‍ते यहां हैं..क्‍या तुम्‍हें मालूम है

    बढि़या गज़ल है....वाह

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  3. बहुत सलाहियत से जज़्बात का इज़हार हुआ है. बहुत खूब.

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  4. उत्कृष्ट प्रस्तुति.सुन्दर रचना

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  5. pakheru ji saxsena ji gzl quboolne ke liye aabhaar

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  6. geeta agrawal- sharma3/22/14, 8:52 AM

    Wah

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  7. वाह्ह्ह्ह बहुत खूब गज़ल 1

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