मेरे गम का क्या सबब है
क्या तुम्हे मालूम है
दर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम है
मानता हूं है बहुत काली मेरी लैला मगर
सादगी उसकी गज़ब है क्या तुम्हे मालूम है
इश्क है गहरा समन्दर पार जाता है वही
डूबने का जिसको ढ़ब है क्या तुम्हे मालूम है
जानता हूं सुध कयामत के दिवस लोगे मेरी
पर जरूरत आज अब है क्या तुम्हें मालूम है।
सायबानो में रकीबों के तेरा हो जिक्र जब
जान जाती मेरी तब है क्या तुम्हे मालूम है
तुम जमाने से छुपा लोगे सखा अपने गुनाह
देखता रहता है वो सब है क्या तुम्हे मालूम है
मीरा राधा गोपियां उद्धव सुदामा गर बनो
श्याम मिलता यार तब है क्या मालूम है
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
मेरे गम का क्या सबब है क्या तुम्हे मालूम है
ReplyDeleteदर्द सहना भी अदब है क्या तुम्हे मालूम है
बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय
vandanaji gzl kubool karne hetu aabhaar
Deleteहम सुदामा बन गये थे श्याम ही बचता फिरा
ReplyDeleteमतलबी रिश्ते यहां हैं..क्या तुम्हें मालूम है
बढि़या गज़ल है....वाह
Tyanx
Deleteबहुत सलाहियत से जज़्बात का इज़हार हुआ है. बहुत खूब.
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति.सुन्दर रचना
ReplyDeletepakheru ji saxsena ji gzl quboolne ke liye aabhaar
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह बहुत खूब गज़ल 1
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