Thursday, May 14, 2009

............................. आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी

मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी

हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी

हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी

सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी

नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी

हैंश्यामगर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी

मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,
२ २ १ २ २ २ १ २.२ २ १ २,२ २ १ २,

7 comments:

  1. bahut umda gazal shyamji,


    हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
    खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी

    wah, badhai sweekaren.

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  2. Waah !! Sundar gazal !! Badhai.

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  3. नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
    इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी..
    बहुत उम्दा .

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  4. सुन्दर गजल
    वीनस केसरी

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  5. wah bhaut hi achhi gazal

    khas kar paaye hai gum kitne tere pencho kham se zindgi
    bhaut khoob

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  6. हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
    इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी

    wahhhhhhhh bahut badhiya likha hai
    kis kis daur se guzarte hain hum
    ek baar toh aake humse bhi mil zindagi

    shubkamnayon ke saath
    nira

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  7. My favorite-

    हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
    खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी

    हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
    इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी

    सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
    पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी

    Pranaam
    RC

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