Monday, May 18, 2009



आइना भी देखने को दिल नहीं करता
अब किसी से रूठने को दिल नहीं करता

आज वो तैयार हैं सब-कुछ लुटाने को
पर उन्हें यूँ लूटने को दिल नहीं करता

सच कहूंगा तो वो शायद झूठ समझेगा
झूठ उससे बोलने को दिल नहीं करता


बेखुदी में खो गया हूँ इस कदर कुछ मैं
अब खुदी को ढूँढने को दिल नहीं करता

ले चलो कश्ती भँवर में 'श्यामतुम अपनी
यूं किनारे डूबने को दिल नहीं करता


फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ा या फ़ाइलु्न फ़ेलुन
गज़ल न० ३१

10 comments:

  1. Sir this is a very very beautiful Ghazal. I really loved each She'r. Too good.

    .. I can't make out which She'r I liked more!

    Pranam
    RC

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  2. I am back :-)

    I think these two are gems -

    आज वो तैयार हैं सब-कुछ लुटाने को
    पर उन्हें यूँ लूटने को दिल नहीं करता

    सच कहूंगा तो वो शायद झूठ समझेगा
    झूठ उससे बोलने को दिल नहीं करता

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  3. ले चलो कश्ती भँवर में 'श्याम’ तुम अपनी
    यूं किनारे डूबने को दिल नहीं करता

    बहुत खुद्दार शेर है श्याम जी...बेहतरीन...पूरी ग़ज़ल ही असरदार है...बधाई..
    नीरज

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  4. वाह !!! रवानगी लिए सुन्दर ग़ज़ल !!

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  5. ले चलो कश्ती भँवर में 'श्याम’ तुम अपनी
    यूं किनारे डूबने को दिल नहीं करता

    वाह क्या बात है
    वीनस केसरी

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  6. आज वो तैयार हैं सब-कुछ लुटाने को
    पर उन्हें यूँ लूटने को दिल नहीं करता

    बहुत सुन्दर रचना . दिल से बधाई.

    बहुत टूट चूका हूँ जिन्दगी में यारो
    अब और टूटने को दिल नहीं करता.

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  7. बहुत टूट चूका हूँ जिन्दगी में यारो
    अब और टूटने को दिल नहीं करता.

    दिल को छू गया ग़ज़ल का यह शेर.

    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  8. ले चलो कश्ती भँवर में 'श्याम’ तुम अपनी
    यूं किनारे डूबने को दिल नहीं करता

    बेहद खूबसूरत !!
    यह शेर इस ग़ज़ल कि आत्मा है

    स्वप्न मंजूषा

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  9. manjusha ji se purantah sahamat
    bahut khub likha hai aapne shyaam ji

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