Wednesday, September 30, 2009

हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां-गज़ल श्याम सखा


हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां


जब भी तुझको याद करते हैं सनम
खुद को ही बरबाद करते हैं सनम


आपके पहलू में निकले अपना दम

बस यही फरियाद करते हैं सनम


हम फ़कीरों का ठिकाना, है कहां

टूटे दिल आबाद करते हैं सनम


कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहें

पर तुझे आजाद करते हैं सनम


खेल अपनी जान पर ही तो शलभ

इश्क जिन्दाबाद करते हैं सनम


कोशिशे नाकाम सारी जब हुईं

तब भला इमदाद करते हैं सनम


‘श्याम’ था दरवेश,था खानाखराब

पर उसे सब याद करते हैं सनम



फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन shu zin b-23/110

मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/

25 comments:

  1. श्याम सखा जी सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर् गजल जनाब.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. आपने बहुत ही बेहतर ग़ज़ल लिखी है .
    दिल से बधाई!!

    ReplyDelete
  5. khel apni jaan par..........


    behatareen rachna , shyamji..........badhaai sweekaren.

    ReplyDelete
  6. kaid julfon mein teri hum to rahen .......

    kmaal ka sher hai Shyaam ji ..... bahoot lajawab likhte hain aap......

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब !
    धन्यवाद आपका!

    ReplyDelete
  8. मतला, अशआर, रवानी, बयान, फन, शास्त्रीयता----, किस किस चीज़ की तारीफ करूं. यकीन जानें, तबीयत खुश कर दी आपने. मैं, अपने एक शायर दोस्त 'अर्श' चर्खार्वी के साथ इस गजल का लुत्फ़ उठा रहा था. अर्श साहब ने आपकी बेहद तारीफ कर दी. इतनी कि मुझे जलन महसूस होने लगी.
    एक बार फिर गजल पर...मतला, फरियाद, जिंदाबाद........और पर तुझे आजाद करते ......जवाब नहीं, आज की दोपहर धनी हो गयी. और हाँ ..... बगैर बुलावे के, अपने आप ब्लॉग पर चला आया, शायद इस गजल की खुशबू खींच लाई. शुक्रिया, बधाई.

    ReplyDelete
  9. Isme Gajaliyat ka Abhaav hai ..........

    ReplyDelete
  10. सरवत जी ने बिल्कुल सही तारीफ़ की है.
    हम फकीरों का ठिकाना हैं कहां... बहुत खूब वाह!

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई

    ReplyDelete
  12. बहुत सुंदर ग़ज़ल...धन्यवाद!!!

    ReplyDelete
  13. डॉ. श्याम जी,

    लूट ले गये महफिल "कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहे....

    बहुत ही अच्छा शे’र है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  14. अछि ग़ज़ल खूब पसंद आयी.. हिंदी ग़ज़ल के हिसाब से खुबसूरत ग़ज़ल .. काफिये का प्रवाह अपने आप में कमाल का है ... ढेरो बधाई खुबसूरत ग़ज़ल के लिए...

    अर्श

    ReplyDelete
  15. tau g ram ram
    aane bulaya tha lo ham aa gay .aap ki shayri ka javab nahin . kabhi kabhi hamare blog par najar dal kar galtiyan bataiaga . sudhar karunga .

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..!!

    ReplyDelete
  17. Bahut khoob Shyam bhaaii...behtareen ghazal
    neeraj

    ReplyDelete
  18. भाई श्याम जी,

    एक बार फिर से महफ़िल में जान डाल दी आपने. ग़ज़ल पढ़ कर अच्छा लगा.
    हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

    ReplyDelete
  19. चौथा
    और
    पाँचवाँ
    शेर
    अच्छा
    है!

    ReplyDelete
  20. "कैद जुल्फों में तेरी हम तो रहें
    पर तुझे आजाद करते हैं सनम"
    ये लाजवाब है

    ReplyDelete