गिर-गिर कर तू सँभलना सीख
पल-पल रंग बदलना सीख
क्या पाया हँसकर अब तक
यार हसद में जलना सीख
दुनिया छलती है सबको
तू दुनिया को छलना सीख
पाँवों से सब चलते हैं
सर के बल तू चलना सीख
वक्त मज़े में गुजरेगा
हर साँचे में ढलना सीख
हर साजिश को कर दे खाक
शोला बनकर जलना सीख
`श्याम' कभी बालक बन कर
मेले बीच मचलना सीख
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
वाह जी ! क्या खुबसूरत ग़ज़ल है ! छोटी बहर में बड़ी बात कह दी आपने तो ! बधाई !
ReplyDeleteमुझे ये दो शेर बहुत अच्छा लगा ....
दुनिया छलती है सबको
तू दुनिया को छलना सीख
`श्याम' कभी बालक बन कर
मेले बीच मचलना सीख
जी बहुत सुन्दर विचार आपने प्रस्तुत किये!
ReplyDeleteकुंवर जी,
waqy me sahi bat he janab
ReplyDelete`श्याम' कभी बालक बन कर
मेले बीच मचलना सीख
दुनिया छलती है सबको
तू दुनिया को छलना सीख
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
`श्याम' कभी बालक बन कर
ReplyDeleteमेले बीच मचलना सीख
हर मर्ज की दवा तो यही है
बहुत सुन्दर गज़ल
बहुत बढ़िया शेर हैं सभी..उम्दा गज़ल!
ReplyDeleteगिर-गिर कर तू सँभलना सीख
ReplyDeleteपल-पल रंग बदलना सीख
क्या बात है जी बहुत बहुत सुंदर
धन्यवाद
श्याम जी
ReplyDeleteछोटी भर को पढ़ना हमेशा से पसंद है
गजल का मकता बहुत बहुत पसंद आया
क्या तंज़ की चाशनी में लपेटी हुई गजल पेश की है, मज़ा आ गया. हालात और वातावरण को दृष्टिगत रखते हुए जो मशवरे आप ने इस गजल के माध्यम से दिए हैं, उनकी प्रासंगिकता से इंकार मुमकिन ही नहीं.
ReplyDeleteकुछ और मोती जड़ गए आपके ताज में.
हर साजिश को कर दे खाक
ReplyDeleteशोला बनकर जलना सीख
बहुत ही उम्दा रचना है, वक़्त के साथ बदलना, नए ज़माने के साथ कदम से कदम मिला कर चलना...
छोटी बहर में लिखी दमदार ग़ज़ल ... हर शेर कुछ नया दर्शन देता हुवा .......
ReplyDeleteसर के बल…
ReplyDeleteतंज़-ओ-मश्वरा ख़ूब है
अच्छी ग़ज़ल है आपकी
मतलब की क़ायनात है
पुण्य की न पापकी
आदाब!
श्याम जी, अच्छा लिखा है पर पहले शेर से अन्तिम शेर तक आते आते तो आप फिर बच्चे की मासूमियत पर आ गए तो पहले शेर की चालाकी "पल-पल रंग बदलना सीख" का क्या होगा।
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