दिल तुझे जो दे दिया है
इश्क सचमुच इक बला है
खुद मजा है,खुद सजा हैइश्क सचमुच इक बला है
रोग भी खुद,खुद दवा है
गम से बचकर है निकलना
प्यार ही बस रास्ता है
आ रही शायद वही है
दिल मेरा जो झूमता है
है हसीं अपनी धरा ये
चाँद पीछे घूमता है
ढूंढता है ‘श्याम किसको
दिल हुआ क्या लापता है
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ...
ReplyDeleteगम से बचकर है निकलना
प्यार ही इक रास्ता है
क्या बात है ... इस दुनिया के ग़मों का हल तो प्यार ही है ... दिल में प्यार हो तो मन में शान्ति होगी !
सिर्फ एक बात कहना चाहूँगा कि
है धरा अपनी हंसी इतनी
चाँद पीछे घूमता है
इस शेर में मिसरे ऊला शायद और बेहतर बनाया जा सकता है ... वैसे मैं आपके सामने बच्चा हूँ ... मेरी इतनी औकात नहीं है कि मैं आपकी रचना में कोई ऐब ढूंड निकालूं ... इसलिए कुछ कहूँ तो बुरा मत मानियेगा ...
मैं बस आपसे सीखना चाहता हूँ ...
क्या इस पंक्ति को इस तरह लिखा जा सकता है ?
"अपनी धरा हंसी इतनी"
है धरा अपनी हंसी इतनी
ReplyDeleteचाँद पीछे घूमता है
वाह कितनी सुन्दर बात कही है ..बेहतरीन ग़ज़ल हुई है..बधाई कुबूल करें.
अति सुंदर ग़ज़ल के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteगम से बचकर है निकलना
ReplyDeleteप्यार ही इक रास्ता है
है हसीं अपनी धरा ये
चाँद पीछे घूमता है
उम्दा :)
छोटी बहर तो हमारी कमजोरी है :)
वाह..श्याम जी बहुत खूब...बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई
ReplyDeleteहै हसीं अपनी धरा ये
ReplyDeleteचाँद पीछे घूमता है
बहुत खूब...
देर से सही लेकिन दुरुस्त आया. इतनी नन्ही सी बहर में आपने मोती पिरो दिए हैं चाँद का धरती के पीछे घूमना, आपने एक एक नया शोध किया है. कमाल की तलाश है.
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर लोगों के मशवरे देख रहा हूँ और सिर्फ मुस्कुरा रहा हूँ. गजल का व्याकरण और शास्त्र समझे बगैर इस तरह के मशवरे! जिज्ञासा अच्छी चीज़ है लेकिन श्याम भाई सीधे रचना पर एक पंक्ति थोपे जाना, यह ऐसा मामला है जो मशवरा देने वाले के ज्ञान पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देता है.
आप इन बच्चों को मेल के जरिए यह बताएं की कमेन्ट की डिसप्लिन क्या है.
आपकी ग़ज़ल में हर बात बड़ी सादगी से कही गई है ...मुझे बहुत पसंद आई
ReplyDeleteमैंने ये कहा है कि मेरी कोई औकात नहीं है कि मैं आपकी रचना में कोई खामी ढूँढू, मैं बस सीखना चाहता हूँ और इसलिए पुछा हूँ कि किसी एक पंक्ति को क्या इस तरह लिखा जा सकता है या नहीं (मैंने कोई पंक्ति नहीं थोपी है, कोई मशवरा नहीं दिया है) ... यदि यह गलत बात है, तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ... मुझे नहीं पता था कि इस बात से टिपण्णी करने का अनुशासन भंग हो जायेगा ... आपको बुरा लगा है तो आप कृपया मेरी यह अनुशासन भंगकारी टिपण्णी को हटा दीजिये ! मैंने आजतक यही जाना था कि सीखने का सबसे अच्छा तरीका है सवाल पे सवाल करते जाना ... अंग्रेजी में एक कहावत है "If you ask a question, you will appear to be a fool for a moment, but if you do not ask the question, you will remain a fool forever" ...
ReplyDeleteमेरे ज्ञान पर कोई प्रश्नचिंह क्या लगाएगा ... मैं खुद कहता हूँ कि मैं अज्ञानी हूँ, शिक्षार्थी हूँ, मुझे ग़ज़ल के व्याकरण और शास्त्र के बारे में कुछ भी नहीं पता ... बस जितना समझ में आता है लिखता हूँ, लोग ब्लॉग पर आते हैं, उत्साह वर्धन करते हैं, इसके लिए आभारी हूँ, और अच्छा लगता है जब कोई ध्यान से पढता है, और यदि कोई गलती है तो उस ओर मेरा ध्यान आकर्षित करता है ... आपकी ग़ज़ल पढ़ी, बहुत अच्छा लगा, पर उस पंक्ति में, पता नहीं क्यूँ, खटका सा लगा, इसलिए पूछ लिया ...
मैं चाहता तो खुद अपनी टिप्पणी हटा सकता था, पर यह निर्णय मैं आप पर छोड़ता हूँ ...
ReplyDeleteक्यूंकि यदि यह मेरी गलती है ... तो उपरोक्त निर्णय लेने का हक़ मुझे नहीं है ...
आखिर कोई तो वजह रही होगी की "सुमन जी" हर किसी के ब्लॉग पर केवल "nice" इतना ही टिपण्णी देते हैं ... शायद मुझे भी यही करना चाहिए ....
ReplyDeleteकिसी भी रचना को बिना पढ़े ही "वाह, बहुत अच्छा, क्या बात है, लाजवाब, बेहतरीन, आपने बहुत अच्छा लिखा है, अति उत्तम इत्यादि इत्यादि" लिखा जा सकता है ... और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि कई लोग ऐसा ही करते हैं, पर न जाने क्यूँ मैं ऐसा कर नहीं पाता हूँ , ऐसा लगता है कि इससे रचनाकार की मेहनत का अपमान हो रहा है ... पर मैं अज्ञानी हूँ, मुझे टिपण्णी का अनुशासन क्या पता ...
ReplyDeleteWaah...atisundar mugdhkari...
ReplyDeleteप्रिय इन्द्रनील
ReplyDeleteआप इतने उद्गिन न हों ,आप ने जाने अनजाने में जिस शे‘र का जिक्र किया,उसमें कुछ गलती तो थी ही वह न सही जो आपने कहा, जो आपके व प्रकाश अर्श के कहने पर दोबारा देखा तो पाया
है धरा अपनी हसीं इतनी
२ १ २ २ २ १ २ २ २ यानि २ मात्रा अधिक हो गईं थी
अब इसे यूं कर दिया है
है हसीं अपनी धरा ये
चाँद पीछे घूमता है
चाँद पीछे घूमता है
आपने ठीक लिखा कि केवल nice अच्छी कहने से रचनाकार का मन तृप्त नहीं होता टिपण्णी तो रचनात्मक ही होनी चाहिये
श्याम जी, आपके उत्तर पाकर मुझे बहुत अच्छा लगा, आपने मुझ जैसे अज्ञानी की टिपण्णी को सकारात्मक तरीके से अपनाया यह देख कर मेरा मन अभिभूत हो गया है ... मैं फिर कहता हूँ कि मैं कोई ग़ज़ल का ज्ञाता नहीं हूँ, पर उन पंक्तियों में, मुझे ऐसा लगा, कि लय टूट रहा है, इसलिए लिखा, ... मैंने यह अपना बड़प्पन दिखाने के लिए नहीं किया ... कर भी नहीं सकता हूँ ... चींटी हाथी के सामने बड़प्पन, चाहे भी तो दिखा नहीं सकती है .... सादे मन से पूछ लिया था ... हाँ सही क्या है और गलत क्या (ग़ज़ल के व्याकरण के हिसाब से) यह ज़रूर सीखने कि इच्छा है ... यदि आप मुझे सिखा सकते हैं तो बड़ी इनायत होगी ... मेरा ईमेल यह है indraneel1973@gmail.com ...
ReplyDeleteऔर अंत में बस इतना ही कहूँगा कि ... श्री रामजी के सेतु बंधन में गिलहरी ने भी साथ दी थी, उनसे कितना बन पड़ा होगा यह तो पता नहीं ... पर क्या इतना ही काफी नहीं कि उन्होंने साथ देने कि कोशिश तो की ...
इश्क सचमुच इक बला है
ReplyDeleteखुद मजा है,खुद सजा है
waah. yah she'r mujhe pasand aayaa...
मित्रो गज़ल के सतत प्रक्रिया है यानि हर शे‘र को बार-बार लिखा जा सकता है जैसे
ReplyDeleteइश्क सचमुच इक बला है
खुद मजा है,खुद सजा है
रोग भी खुद,खुद दवा है
Tippaniyan badiya rahi....
ReplyDeleteआपको पढ़ कर लगता है की ग़ज़ल दरसल है क्या.....क्या खूब मतला है.....हर एक शेर लाजवाब. यह शेर खास लगा......
ReplyDeleteइश्क सचमुच इक बला है
खुद मजा है,खुद सजा है
उम्दा
श्याम सखा जि, व इन्द्रनील----धरा तो अपनी ही है-अतः--होना चाहिये--
ReplyDelete--है हसीं इतनी धरा ये... अर्थ प्रतीति अब अच्छी आयेगी.हसीं शब्द को बल मिलता है.
---सर्वत एम जी को मुस्कुराना ही है, वे शायद सिर्फ़ nice, कहने वालों में हैं, समझिये --एक बच्चे ने गज़ल में सुधार करदिया। टिप्पणी सार्थक होनी चाहिये न कि बस झूठी वाह वाह...
--- इन्द्रनील के लिये---वाह ..वाह...
आपकी ग़ज़ल पर चला एक संवाद जब विराम पा चुका है तो मैं सिर्फ़ यही कह सकता हूँ कि कहन की संभावनायें असीमित होती हैं और मुख्यत: शाइर विशेष की शैली पर निर्भर करती है। अगर बह्र, रदीफ़ और काफिया सलामत है तो सामान्यतय: कहन के लिये शाइर को स्वतंत्र रहने देना चाहिये, यह उसका हक़ होता है और वह उसके लिये जिम्मेदार होता है। बह्र पर भी टिप्पणी करते समय ग़ज़ल में अनुमत्य छूट जरूर देख लेना जरूर होता है।
ReplyDeleteकहन पर सुझाव देने के लिये ई-मेल का उपयोग ठीक रहता है। लेकिन यह तभी करना चाहिये जब परस्पर सम्बन्ध इसकी अनुमति देते हों।
मुझे भी कई बार ग़ज़ल के स्थापित हस्ताक्षरों से ई-मेल पर पृथक से सुझाव प्राप्त होते हैं।
सार्वजनिक रूप से विपरीत टिप्पणी देना बुरा नहीं है लेकिन उसके पहले ग़ज़ल को बारीकी से समझना जरूरी हो जाता है।
इंद्रनील अभी सीख रहे हैं ग़ज़ल कहना और अच्छी बात यह है कि गंभीरता से सीख रहे हैं।
श्याम भाई साहब की ग़ज़लें जब से मैं पढ़ रहा हूँ मैंने देखा है कि ये प्रयोगवादी हैं और अभिनव प्रयोग करते रहते हैं, इसलिये इनकी ग़ज़ल पर कुछ कहने से पहले ग़ज़ल को बारीकी से समझना जरूरी हो जाता है।
श्याम जी आनंद आ गया सुबह सुबह। विचार और शब्दों के अटूट बंधन में दिल लापता नहीं सापता यानी पते के साथ हो जाता है और मुझे तो आपके दिल का रास्ता मालूम है वो तो शब्दों के रास्ते गहरे उतर जाता है। यह प्रत्येक नेक रचनाकार के साथ होता है।
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