हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें
थीं करनी तुमसे मुझे बेहिसाब-सी बातें
हो तुम भी, हम भी हैं जब साफगो, उठीं फिर क्यों
हमारे बीच बताओ नकाब-सी बातें
बगैर जाम के मदहोश कर दिया उसने
रहा वो करता ही हर पल शराब-सी बातें
इलाही तुम ही हो क्या रूबरू मेरे ये कहो
हकीकतो में भी होती हैं ख्वाब-सी बातें
खुदा का जिक्र ही होता है कब जहाँ में अब
यहाँ तो होती हैं बस अब अजाब-सी बातें
समझना ‘श्याम’ को आसां नहीं कभी यारो
करे है वो तो सदा बस किताब-सी बातें
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
shabdo ka chayan ..........badhiya
ReplyDeletewaah badhiya rachna...badhayi
ReplyDeletebahut umda rachna par
ReplyDeletebadhai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
matla bada ajeeb laga ..."behisaab " to behisaab hi hota hai ...usme "si" ki baat kahaan se aa gayi .."behsaab " koi shay to hai nahi ki koi shay uske jaisi ho jayegi ...
ReplyDeleteghazal ke baki sher bhi yun hi se lage ... aap ko maine isse behtar ghazlen kahte dekha hai ..
कमाल की रचना है, बेहतरीन!
ReplyDeleteकुछ अलग लगी ये रचना, आपके फॉर्मेट से हटके, तह वही है पर दरिया कुछ और ही दिशा में बह रहा है.
ReplyDeleteसुन्दर गजल।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती के साथ शब्दों का जाल बुना है
ReplyDeletebahut khoobsurat..
ReplyDeletehar sher lajwaab hai..
सुन्दर रचना...
ReplyDelete