Monday, June 14, 2010

हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें-gazal


हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें
थीं करनी तुमसे मुझे बेहिसाब-सी बातें

हो तुम  भी, हम भी हैं जब साफगो, उठीं फिर क्यों
हमारे बीच बताओ नकाब-सी बातें

बगैर जाम के मदहोश कर दिया उसने
रहा वो करता ही हर पल शराब-सी बातें

इलाही तुम ही हो क्या रूबरू मेरे ये कहो
हकीकतो में भी होती हैं ख्वाब-सी बातें

खुदा का जिक्र ही होता है कब जहाँ में अब
यहाँ तो होती हैं बस अब अजाब-सी बातें

समझनाश्यामको आसां नहीं कभी यारो
करे है वो तो सदा बस किताब-सी बातें

मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन

मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

10 comments:

  1. shabdo ka chayan ..........badhiya

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  2. bahut umda rachna par
    badhai

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  3. matla bada ajeeb laga ..."behisaab " to behisaab hi hota hai ...usme "si" ki baat kahaan se aa gayi .."behsaab " koi shay to hai nahi ki koi shay uske jaisi ho jayegi ...

    ghazal ke baki sher bhi yun hi se lage ... aap ko maine isse behtar ghazlen kahte dekha hai ..

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  4. कमाल की रचना है, बेहतरीन!

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  5. कुछ अलग लगी ये रचना, आपके फॉर्मेट से हटके, तह वही है पर दरिया कुछ और ही दिशा में बह रहा है.

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  6. सुन्दर गजल।

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  7. बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों का जाल बुना है

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  8. सुन्दर रचना...

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