Thursday, August 19, 2010

काश मिल जाये कोई अपना -gazal


1
गर खुदा खुद से जुदाई दे
कोई क्यों अपना दिखाई दे

काश मिल जाये कोई अपना
रंजो-गम से जो रिहाई दे

जब न काम आई दुआ ही तो
कोई फिर क्योंकर दवाई दे

ख्वाब बेगाने न दे मौला
नींद तू बेशक पराई दे

तू न हातिम या फरिश्ता है
कोई क्यों तुझको भलाई दे

डूबने को हो सफीना जब
क्यों किनारा तब दिखाई दे

आँख को बीनाई दे ऐसी
हर तरफ बस तू दिखाई दे

साथ मेरे तू अकेला हो
अपनी ही बस आश्नाई दे

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन फ़ा



मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

13 comments:

  1. सभी अशआर बढ़िया.

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  2. ख्वाब बेगाने न दे मौला
    नींद तू बेशक पराई दे
    Waah! kya khubsurat baaat kahi hai ji

    आँख को बीनाई दे ऐसी
    हर तरफ बस तू दिखाई दे
    lajwaab.....maza aagaya
    Dhanywaad

    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  3. आज तो अपने भी पराए दिखाई दे :(

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  4. जब न काम आई दुआ ही तो
    कोई फिर क्योंकर दवाई दे sahi farmaya aapne shyamji.bahut khoob!!!

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  5. तू न हातिम या फरिश्ता है
    कोई क्यों तुझको भलाई दे
    डूबने को हो सफीना जब
    क्यों किनारा तब दिखाई दे..
    वाह वाह क्या बात है! बहुत ही सुन्दर और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने ! बधाई!

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  6. मुझे लगता था कि छोटी बहर में मैं कुछ अलग हूँ लेकिन आपको जब पढ़ता हूँ तो ग़ालिब का यह शेर धमाके की तरह महसूस होता है----
    "रेख्ती के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ग़ालिब
    सुनते हैं पिछले जमाने में कोई मीर भी था".
    मेरी तो बोलती बंद है, आगे क्या कहूं?

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  7. बहुत बहुत सुन्दर...

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  8. आदरणीय श्याम सखा जी आपके अच्छे ख़यालात आपके अशआर में
    बहुत ही मुकम्मल तरीके से प्रदर्शित हो रहे हैं ,मुबारकबाद, लेकिन एक बात आपसे कहना चाह रहा हूं जिस बहर में आपने ये रचना लिखी है वो बहरे रमल है। ये सालिम(मुफ़रद) बहर है इसका विस्तार सालिम रुक्न से होती है। (फ़ा2 इ1 ला2 तुन2 या फ़ा2 इ1 लुन2)

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  9. साथ मेरे तू अकेला हो
    अपनी ही बस आश्नाई दे

    बेहतरीन!

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