Friday, February 18, 2011

क्यों रुलाऊं धूप को- गज़ल किशन तिवारी

 आज मै अपने मित्र प्रसिद्ध गीतकार किशन तिवारी की गज़ल जो मुझे बहुत पसन्द है पोस्ट कर रहा हूं- देखें आपको कैसी लगती है

 चाहता हूँ भींचकर मुट्ठी में बांधू धूप को
धूप के बदले में केवल चाहता हूं धूप को

वो बुलाती   मुझको आंगन में कभी छत पर कभी
 सोचता हूं मैं कभी घर में बुलाऊं धूप को

 मुस्कराती है कभी हँसती ठहाका मारकर
मैं सुना अपनी कहानी क्यों रुलाऊं धूप को

मैं कभी बेचैन होता हूं  बहुत जब रात  को
है बहुत  हारी थकी अब क्यों जगाऊं धूप को

आपने चाहा मिटा दें रोशनी का ही वजूद
मेरी कोशिश है कि मैं बच्चों में बांटू धूप को




मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

3 comments:

  1. वाह! किशन तिवारी जी की गज़ल पसंद आई.

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  2. वाह क्या खूब ख्याल है……….बहुत सुन्दर्।

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