Sunday, February 20, 2011

गर न समझे वो,--------gazal

 12 न.ह

वो जो उलझे हैं सुलझ भी जाऍँगे
बीते पल लेकिन न फिर आ पाएँगे

सर उठाकर जो नहीं चल पाएँगे ,
लोग वो सिक्कों मे ही ढ़ल जाएँगे


वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
गर न समझे वो, समझ हम जाएँगे

अपना दामन साफ रखने के लिये
दाग़ दिल पर हाँ सभी तो खाएँगे

है बदलना,वक्त जिनको ‘श्याम’ जी
सामने आकर वही सर कटवाएँगे



फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन



मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

12 comments:

  1. वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
    गर न समझे वो, समझ हम जाएँगे....

    बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।
    हार्दिक शुभकामनाएं !

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  2. bahut khub hai. maaf kare mujhe Maqta ka aakhiri mishra baher men nahi lag rha hai.

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  3. वाह...बहुत सुन्दर शेर गढ़े हैं आपने..

    सुन्दर ग़ज़ल...

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  4. sachmuch aapka blog bahut achcha hai gajle gahri hoti hai, kavi mark to kavi karun. sare ras hain inme. achcha laga.

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  5. सर उठाकर जो नहीं चल पाएँगे ,
    लोग वो सिक्कों मे ही ढ़ल जाएँगे

    बहुत ख़ूबसूरत और सच्चा शेर

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  6. अपना दामन साफ रखने के लिये
    दाग़ दिल पर हाँ सभी तो खाएँगे

    खूबसूरत शेर!

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  7. बीते पल लेकिन न फ़िर आपायेगे .वाह क्या बात है.
    किशन तिवारी भोपाल.

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