Saturday, March 12, 2011

उनकी बातें हुईं झिड़कियों की तरह------गज़ल

14

घूमना है बुरा तितलियों की तरह
घर भी बैठा करो लड़कियों की तरह

दिल में उतरी थी वो बिजलियों की तरह
जब गई तो गई,आँधियों की तरह

उनकी बातें हुईं झिड़कियों की तरह
जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह


 





 

आ लिखें ,फ़िर से खत ,एक दूजे को हम
बालपन में लिखीं तख्तियों की तरह

देखकर,आपको धड़कने ,हैं हुई
कूदती,फाँदती हिरनियों की तरह

जल गये मेरे अरमां सभी के सभी
फूंक डाली गईं झुग्गियों की तरह

छोड़ कर चल दिये वो हमें दोस्तो
आम की चूस लीं गुठलियों की तरह

बात अपनी कहो कुछ मेरी भी सुनो
शोख चंचल खिली लड़कियों की तरह

जिन्दगी फिर रही है तड़पती हुई।
जाल में फँस गई मछलियों की तरह

प्यार करना ही है गर तुम्हें तो करो
मीरा, राधा या फिर गोपियों की तरह


काश हो जाते हम नामवर दोस्तो
मिट गई प्यार में हस्तियों की तरह

चाहते आप ही बस नहीं हैं हमें
घूमता है जहां फिरकियों की तरह

आज मायूस है क्यों वो, कल तक जो थी
खेलती कूदती हिरनियों की तरह

माफ कर दें इन्हें आप भी ‘श्याम’ जी
आपकी अपनी ही गलतियों की तरह


फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन




मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

8 comments:

  1. और उन से मिलना हुआ खुजलियों की तरह :)

    ReplyDelete
  2. अच्छे शेर हुए हैं बधाई!

    ReplyDelete
  3. प्यार करना ही है गर तुम्हें तो करो
    मीरा, राधा या फिर गोपियों की तरह

    काश हो जाते हम नामवर दोस्तो
    मिट गई प्यार में हस्तियों की तरह

    आज मायूस है क्यों वो, कल तक जो थी
    खेलती कूदती हिरनियों की तरह

    बहुत खूबसूरत लगे।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर और लाजवाब शेर ! बधाई!

    ReplyDelete
  5. सुंदर शेरों से सजी सुंदर गज़ल ।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर... तारीफ़ में क्या कहें हम !!

    ReplyDelete
  7. बहुत ही सुन्दर और मजेदार गजल है |



    अवनीश तिवारी

    ReplyDelete