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हाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
चुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां
जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूँ तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिटिठयां
वक्त की मुटठी में बनकर जब महाजन आयीं ये
तोलती थीं ये कभी ज्यादा, कभी कम चिटिठयां
चाहता है दिल कभी जब उसको सहलाये कोई
खोलती हैं जख्म तब बस खामखा ये चिटिठयां
जब भी तनहाई का आलम यारो गहराता गया
आस-पास अपने लगीं तब डोलने ये चिटि~ठयां
आप हमको भूलने लगते हंै जब भी ‘श्याम’ जी
यादों के सन्दूक तब-तब खोलतीं ये चिटिठयां
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
हाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
चुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां
जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूँ तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिटिठयां
वक्त की मुटठी में बनकर जब महाजन आयीं ये
तोलती थीं ये कभी ज्यादा, कभी कम चिटिठयां
चाहता है दिल कभी जब उसको सहलाये कोई
खोलती हैं जख्म तब बस खामखा ये चिटिठयां
जब भी तनहाई का आलम यारो गहराता गया
आस-पास अपने लगीं तब डोलने ये चिटि~ठयां
आप हमको भूलने लगते हंै जब भी ‘श्याम’ जी
यादों के सन्दूक तब-तब खोलतीं ये चिटिठयां
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
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चिट्ठियाँ....... क्या याद दिलाया आप ने। जो आनन्द किसी के पत्र से आता था वो अब कहाँ ? कई दिनों के बाद आई हुई चिट्ठी भी पढ़कर अभी-अभी का अहसास देती थी.....सुन्दर रचना......
ReplyDeleteचिट्ठियां पढ़ लेने के बाद परचून की पुडिया बनाने के काम भी आती हैं:)
ReplyDeletejo bhulaa deten hain unko bhooltin naa chithhthhiyaan ...
ReplyDeleteyaad ke taazaa samandar kholtin hain chithhthhiyaan .
"yaadon ke sandook tab tab kholtin ye chithhthhiyaan ."ab to saab !snail mail kehlaatin bichaari chithhthhiyaan .
veerubhai .
आदरणीय श्याम सखा ‘श्याम’जी
ReplyDeleteप्रणाम !
सादर सस्नेहाभिवादन !
मत्ले से मक़्ते तक शानदार रवां-दवां ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद !
जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूं तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिट्ठियां
प्यारा शे'र है …
…और क्या कहने मक़्ते के …
आप हमको भूलने लगते हैं जब भी ‘श्याम’ जी
यादों के सन्दूक तब-तब खोलतीं ये चिट्ठियां
* श्रीरामनवमी , वैशाखी और महावीर जयंती की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
ReplyDeleteचुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां
bahut khoobsoorat sher
विडियो कहाँ है प्रभु...अब उसके बिना मजा न आयेगा...आदत आपने ही डलवाई है... :)
ReplyDeleteहाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
ReplyDeleteचुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां
जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूँ तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिटिठयां
श्याम जी
ग़ज़ल वाकई बहुत खूबसूरत है..... वक्त ने खतों की खुशबू चीन ली मगर वो भी क्या वक्त था जब खतो-किताबत रिश्तों की पहचान होती थी. नोस्टालजियक ग़ज़ल.