Tuesday, April 12, 2011

हमारे आपके उस रूठने के दरमियां--gazal

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हाँ हमारे आपके उस रूठने के दरमियां
चुपके-चुपके बोलती थीं बस हमारी चिटि~ठयां

जिन्दगी में जब कभी भी थीं बढ़ी यूँ तल्खियां
शहद कुछ-कुछ घोलती रहती थीं तब ये चिटिठयां

वक्त की मुटठी में बनकर जब महाजन आयीं ये
तोलती थीं ये कभी ज्यादा, कभी कम चिटिठयां

चाहता है दिल कभी जब उसको सहलाये कोई
खोलती हैं जख्म तब बस खामखा ये चिटिठयां

जब भी तनहाई का आलम यारो गहराता गया
आस-पास अपने लगीं तब डोलने ये चिटि~ठयां

आप हमको भूलने लगते हंै जब भी ‘श्याम’ जी
यादों के सन्दूक तब-तब खोलतीं ये चिटिठयां

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
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Thursday, April 7, 2011

हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें--- gazal

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हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें
 थीं करनी   तुमसे मुझे बेहिसाब-सी बातें



हो तुम  भी, हम भी हैं जब साफगो, उठीं फिर क्यों
हमारे बीच बताओ नकाब-सी बातें

बगैर जाम के मदहोश कर दिया उसने
रहा वो करता ही हर पल शराब-सी बातें

इलाही तुम ही हो क्या रूबरू मेरे सचमुच
हकीकतो में भी होती हैं ख्वाब-सी बातें

खुदा का जिक्र ही होता है कब जहाँ में अब
यहाँ तो होती हैं बस अब अजाब-सी बातें

समझना ‘श्याम’ को आसां नहीं कभी यारो
करे है वो तो सदा बस किताब-सी बातें


मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन



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Monday, April 4, 2011

तसुव्वरात में लाऊँ तेरा सलोना बदन

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तसुव्वरात में लाऊँ तेरा सलोना बदन
कहो मै कैसे भुलाऊँ तेरा सलोना बदन

मगन यूँ होके तुझे मैं निहारूँ, मेरे बलम
पलक-पलक मैं छुपाऊँ तेरा सलोना बदन

नयन तेरे हैं ये मस्ती के प्याले मेरी प्रिया
मैं दिल में अपने बसाऊँ तेरा सलोना बदन

ढलकती-सी तेरी पलकें, ये बांकपन तेरा
नजर से जग की बचाऊँ तेरा सलोना बदन

किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन
किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन

बड़े कुटिल हैं इरादे जनाब ‘श्याम’ के तो
भला मैं कैसे बचाऊँ तेरा  सलोना बदन

मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन





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