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जिन्दगी को जब कभी सिक्कों से है आँका गया
यूँ लगा दोष आपका था और मुझे डाँटा गया
जब किसी कारण से भी घर था कभी बाँटा गया
दुख हमेशा क्यों मेरे ही वास्ते छांटा गया
शख्स जब कोई गिरा अपने उसूलों से कभी
समझो चाँदी की छड़ी से है हाँका गया
मुझमें और सुकरात में बस फ़र्क इतना ही रहा
पी गया वो जह्र पर मुझसे न विष फाँका गया
था गुजरता जब कभी उस शोख के कूचे से मैं
शोर मच जाता था, देखो वह गया, बाँका गया
हमने माना‘श्याम’फक्कड़’और है कुछ बदजुबाँ
पर खरा उतरा है जब परखा गया,जाँचा गया
फाइलातुन,फाइलातुन,फाइलातुन,फ़ाइलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
जबरदस्त...वाह! हर शेर पर दाद कबूलो भाई...
ReplyDeleteशुक्रिया जनाब-गज़ल नवजने के लिये
Deleteश्याम सखा श्याम
हर शेर उम्दा।
ReplyDeleteथा गुजरता जब कभी उस शोख के कूचे से मैं
शोर मच जाता था, देखो वह गया, बाँका गया
क्या जलवे रहे होंगे।
शख्स जब कोई गिरा अपने उसूलों से कभी
ReplyDeleteसमझो चाँदी की छड़ी से है हाँका गया
तिहाड़ जाता है यह रास्ता .अच्छी ग़ज़ल .
जिन्दगी को जब कभी सिक्कों से है आँका गया
ReplyDeleteयूँ लगा दोष आपका था और मुझे डाँटा गया
बहुत ही नए काफिये और सम्पूर्ण अर्थपूर्ण धनद से इस्तेमाल हुए है,
हाँका जाता है....बहुत खूब!!
आप सभी का शुक्रिया
ReplyDeleteहर शेर उम्दा किंतु ये अश’आर लाजवाब -
ReplyDelete"मौत भी तो कमाल करती है
साँसों की देखभाल करती है
रूठकर मुझसे मेरी जानेमन
मेरी ज्यादा सँभाल करती है"
वाह !