देखूं जो तुमको भांग पीके
अबीर गुलाल लगें सब फ़ीके
मोतियाबिन्दी नयनो में काजल
्नित करता मुझको है पागल
अदन्त मुंह और हंसी तुम्हारी
इसमे दिखता ब्रह्माण्ड है प्यारी
तेरा मेरी प्यार है जारी
जलती हमसे दुनिया सारी
क्या समझें ये दुध-मुहें बच्चे
कैसे होते प्रेमी सच्चे
दिखे न आंख को कान सुने ना
हाथ उठे ना पांव चले ना
पर मन तुझ तक दौड़ा जाए
ईलू-इलू का राग सुनाए
हंसते क्यों हैं पोता-पोती
क्या बुढापे में न मुहब्ब्त होती
सुनलो तुम भी मेरे प्यारे
कहते थे इक चच्चा हमारे
कौन कहता है बुढापे में मुहब्ब्त का सिलसिला नहीं होता
आम भी तब तक मीठा नहीं होता जब तक पिलपिला नहीं होता
होली में तो गजल-हज्ल सब चलती है
जलने दो गर दुनिया जलती है
यही तो होली की मस्ती है
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteआपकी पोस्ट कल के चर्चा मंच पर है
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
नमस्कार महोदय,
ReplyDeleteमैंने एक हिंदी काव्य संकलन नामक ब्लॉग बनाया है,जिन पर साहित्यकारों की रचनाओं के संकलित किया जा रहा है,यदि आप की भी कुछ ग़ज़लें/ वहाँ होती तो ब्लॉग की सुंदरता बढ़ जाती.एक बार अवलोकन कर कुछ रचनाये भेजे जो आपके परिचय के साथ प्रकाशित की जायेगी .आपके पेज पर कुछ उच्च कोटि की बेहतरीन ग़ज़लें हैं,वहाँ से भी संकलित की जा सकती है...एक बार अवलोकन करे.आप लोगो जैसे साहित्यकारों का योगदान चाहिए.
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आपका स्नेहकांक्षी