Friday, May 1, 2009

*****चाँद आँगन में मेरे उस रोज मुस्काता तो है-गज़ल



दिल से होकर दिल तलक इक रास्ता जाता तो है
और गर कुछ है नहीं ये इश्क इक धोखा तो है

बेवफ़ा बेशक सही, लेकिन पराया मैं नहीं
उनको मेरी जात पर इतना यकीं आता तो है

है अगर खंजर लिये कातिल तो भी क्या डर उन्हें
पास उनके भी झुकी नजरों का इक हरबा तो है

दोस्ती को तोड़कर वो हो भले दुश्मन गया
बन के दुश्मन साथ मेरे आज भी रहता तो है

याद तुझको जब कभी आती है मेरी जानेमन
चाँद आँगन में मेरे उस रोज मुस्काता तो है

मैने अपनी गलतियों से है यही सीखा `सखा'
कोई समझे या न समझे वक्त समझाता तो है

फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

17 comments:

  1. आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत अच्छी लगी ...

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. दोस्ती को तोड़कर वो हो भले दुश्मन गया
    बन के दुश्मन साथ मेरे आज भी रहता तो है

    वाह। सुन्दर प्रस्तुति। दीप्ती मिश्रा जी कहतीं हैं कि-

    दोस्त बनकर दुश्मनों सा वो सताता है मुझे।
    फिर भी उस जालिम पे मरना अपनी फितरत है तो है।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. दोस्ती को तोड़कर वो हो भले दुश्मन गया
    बन के दुश्मन साथ मेरे आज भी रहता तो है.....
    क्या खूब लाइनें हैं .

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  4. श्याम जी,
    अछि ग़ज़ल कही है आपने बहोत पसंद आया... सारे ही शे'र मुकम्मल .. ढेरो बधाई

    अर्श

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  5. श्याम जी, बेहद अनूठे शेर पैदा कर दिए आपने. 'झुकी पलकों का इक हरबा तो है' पढ़ने के साथ महसूस करने की भी चीज़ है. भाई साहब, मैं मुरीद तो हुआ ही, गज़लों से भी गया

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  6. बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !

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  7. दोस्ती को तोड़कर वो हो भले दुश्मन गया
    बन के दुश्मन साथ मेरे आज भी रहता तो है
    ...............
    कवि महाराज कहू के गजलकार्
    शव्दो मे है सुन्दर आकार * * * * * star
    .............
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु तेरापथ

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  8. बेवफ़ा बेशक सही, लेकिन पराया मैं नहीं
    उनको मेरी जात पर इतना यकीं आता तो है

    sabhi sher umda, badhaai.

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  9. याद तुझको जब कभी आती है मेरी जानेमन
    चाँद आँगन में मेरे उस रोज मुस्काता तो है

    यकीनन चाँद भी छुप ,फिर नज़र आता तो है
    जब भी तेरी याद में वो दिल लुभाता तो है

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  10. मैने अपनी गलतियों से है यही सीखा `सखा'
    कोई समझे या न समझे वक्त समझाता तो है

    सुन्दर ग़ज़ल का सबसे पसंदीदा शेर.

    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  11. मैने अपनी गलतियों से है यही सीखा `सखा'
    कोई समझे या न समझे वक्त समझाता तो है

    बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने....बधाई....
    नीरज

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  12. मैने अपनी गलतियों से है यही सीखा `सखा'
    कोई समझे या न समझे वक्त समझाता तो है

    Ek hi She'r pasand aaya :(

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  13. अच्छी ग़ज़ल...
    कहीं-कहीं पर रदीफ़ जैसे निभ नहीं रहा हो...शायद मेरी कम-इल्मी वजह हो इसकी

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  14. दोस्ती को तोड़कर वो हो भले दुश्मन गया
    बन के दुश्मन साथ मेरे आज भी रहता तो है

    yeh sher bahut pasand aaya
    kayi baar zindgi mein aise hota hai
    nira

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