हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार केबदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार केहंसिये हथौड़े की व्यथा अब क्या सुनायें दोस्तोइनके मसीहा खुद मुसाहिब बन गये बाजार केहै वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़लआते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार केगिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हमपर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार केहर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार केये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार केमुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन
२ २ १ २.२ २ १ २.२ २ १ २.२ २ १ २.
MUSHKIL BAHAR PE ACHHI KASI GAZAL ... SUBAH SUBAH TO PADH KE MAJAA AAGAYAA... HAALAAKI YE GEY BAHAR HAI MAGAR AAPNE KAAFIYE AUR RADIF KO JIS TARAH NIRVAAH KIYA HAI USKE KYA KAHANE SALAAM AAPKI LEKHNI KO... KUCHH GEETO KI BAATEN UKI BAND WAGERA KI BAATEN KRAMASHAH JAARI RAHENGI..
ReplyDeleteAAPKA
ARSH
हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ReplyDeleteये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के
wah shyam ji, dil
khush kitta. badhai.
क्या बात है श्याम साब...वाकई...एकदम अनूठी ग़ज़ल सर
ReplyDeleteमतला और "है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल’ वाला शेर खूब-खूब भाया
है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
ReplyDeleteआते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के
भाई वाह...श्याम जी चेहरे पर मुस्कराहट बिखर गयी आपके इस शेर से....कमाल की ग़ज़ल....वाह...
नीरज
हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
ReplyDeleteबदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार के
bahut badhiyaN...!
Totally new concept !!!
ReplyDeleteBahut achhi hai.......:)
Very nice !!!
आप सभी का आभार
ReplyDeleteश्याम सखा ‘श्याम’
हंसिये हथौड़े का जो सटीक आकलन है, आप ही पेश कर सकते थे बेहद दमदार गजल है. याद दिलाने का शुक्रिया.
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