Wednesday, April 29, 2009

बदरंग ब्यौरे भर हुए-गज़ल




हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
बदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार के

हंसिये हथौड़े की व्यथा अब क्या सुनायें दोस्तो
इनके मसीहा खुद मुसाहिब बन गये बाजार के

है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के

गिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हम
पर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार के

हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के

मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन
२ २ १ २.२ २ १ २.२ २ १ २.२ २ १ २.

8 comments:

  1. MUSHKIL BAHAR PE ACHHI KASI GAZAL ... SUBAH SUBAH TO PADH KE MAJAA AAGAYAA... HAALAAKI YE GEY BAHAR HAI MAGAR AAPNE KAAFIYE AUR RADIF KO JIS TARAH NIRVAAH KIYA HAI USKE KYA KAHANE SALAAM AAPKI LEKHNI KO... KUCHH GEETO KI BAATEN UKI BAND WAGERA KI BAATEN KRAMASHAH JAARI RAHENGI..

    AAPKA
    ARSH

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  2. हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
    ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के

    wah shyam ji, dil
    khush kitta. badhai.

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  3. क्या बात है श्याम साब...वाकई...एकदम अनूठी ग़ज़ल सर
    मतला और "है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल’ वाला शेर खूब-खूब भाया

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  4. है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
    आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के

    भाई वाह...श्याम जी चेहरे पर मुस्कराहट बिखर गयी आपके इस शेर से....कमाल की ग़ज़ल....वाह...
    नीरज

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  5. हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
    बदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार के

    bahut badhiyaN...!

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  6. Totally new concept !!!
    Bahut achhi hai.......:)
    Very nice !!!

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  7. आप सभी का आभार
    श्याम सखा ‘श्याम’

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  8. हंसिये हथौड़े का जो सटीक आकलन है, आप ही पेश कर सकते थे बेहद दमदार गजल है. याद दिलाने का शुक्रिया.

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