Monday, May 24, 2010

चल छैंयां-छैय़ां वाली इस पीढी को तो---gazal

फूल बुरा लगता है,पान बुरा लगता है
जब टूटे दिल तो भगवान बुरा लगता है

चल छैंयां-छैय़ां वाली इस पीढी को तो
मीरा पगली और,रसखान बुरा लगता है

देव अतिथि होता होगा मेरे यार कभी
अब तो घर आया मेहमान बुरा लगता है

वक्त नया आया है,आये संस्कार नये
अब तो झूठ भला,ईमान बुरा लगता है

नव फ़्लैटों की झीनी-झीनी दीवारों में
सब कुछ सुनता सा यह कान बुरा लगता है

रिश्वत के इस अलबेले युग में,बिन रिश्वत के
मुझको काम हुआ आसान बुरा लगता है


मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

20 comments:

  1. बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ... खास कर ये पंक्तियाँ मुझे बेहद पसंद आई -

    वक्त नया आया है,आये संस्कार नये
    अब तो झूठ भला,ईमान बुरा लगता है

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  2. चल छैंयां-छैय़ां वाली इस पीढी को तो
    यारो मीरा पगली,रसखान बुरा लगता है

    ...ये ना हो कभी

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  3. नव फ़्लैटों की झीनी-झीनी दीवारों में
    सब कुछ सुनता सा यह कान बुरा लगता है

    सच्ची बात कह दी है....

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  4. सुन्दर, सार्थक गज़ल.

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  5. बहुत सुंदर ग़ज़ल...वर्तमान का आइना

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  6. मत्ला से मक्ता तक बेहतरीन विचारणीय गजल

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  7. क्य बात है जी , आप ने गजल मै इस पीढी को आईनाद िखा दिया

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. आपने शेर तो बखूबी कहे हैं, पर ये आज और कल की गेहेराई से अनछुए हैं, ये बस तल पर तैरते हुए लगते है, चंट सीधे शब्दों में आपने संपूर्ण आज और कल समेट दिया।

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  10. चल छैंयां-छैय़ां वाली इस पीढी को तो
    मीरा पगली और,रसखान बुरा लगता है

    -बहुत सही!! वाह!

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  11. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा!

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  12. सच्ची बात..बढ़िया ग़ज़ल..श्याम जी बधाई

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  13. वक्त नया आया है,आये संस्कार नये
    अब तो झूठ भला,ईमान बुरा लगता है

    Seedhe saral shabdon mein baat rakhna aapki khoobi hai Shyaam ji ... sabhi sher jeevan ka gahra darshan liye huve hain ...

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  14. सही कहा....

    बहुत सुन्दर रचना...

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  15. काम हुआ आसान बुरा लगने की बात ख़ूब कही आपने। नए ज़माने की पोल-खोल।

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  16. फूल बुरा लगता है,पान बुरा लगता है
    जब टूटे दिल तो भगवान बुरा लगता है
    ...वाह ! लाजवाब शेर है.

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  17. देव अतिथि होता होगा मेरे यार कभी
    अब तो घर आया मेहमान बुरा लगता है
    waah kya baat kahi hai .....
    bahut achchi asardaar gazal

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  18. नव फ़्लैटों की झीनी-झीनी दीवारों में
    सब कुछ सुनता सा यह कान बुरा लगता है
    भाई हमें ये शेर बहुत शानदार लगा चुराने का जी कर रहा है.......

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