Tuesday, June 22, 2010

एक और इम्तिहान है-गज़ल

है जान तो जहान है
 फ़िर काहे का गुमान है

क्या कर्बला के बाद भी
 एक और इम्तिहान है

इतरा रहे हैं आप यूं
 क्या वक्त मेहरबान है

हैं लूट राहबर रहे
 जनता क्यों बेजुबान है

है ‘श्याम ’बेवफ़ा नहीं
हाँ इतना  इत्मिनान है





मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/

18 comments:

  1. है श्याम बेवफ़ा नहीं
    इतना तो इत्मिनान है

    ये इत्मिनात ही बहुत कुछ है

    छोटी बहर तो मेरी कमजोरी है

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  2. behatareen..............

    इतरा रहे हैं आप यूं
    क्या वक्त मेहरबान है
    daad sweekaren

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  3. इतरा रहे हैं आप यूं
    क्या वक्त मेहरबान है
    कम शब्दों में बड़ी बातें कह दी।
    सुन्दर ग़ज़ल।

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  4. है श्याम बेवफ़ा नहीं
    इतना तो इत्मिनान है अल्फाजों के साथ इंसाफ किया है, शुभकामनायें

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  5. इतरा रहे हैं आप यूं
    क्या वक्त मेहरबान है..
    ....बहुत सुंदर ग़ज़ल

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  6. छोटी बहर में एक सहज से प्रवाह के साथ ग़ज़ल अच्छी लगी ।

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  7. वाह!! बेहतरीन निभाया...आनन्द आ गया.

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  8. पांचो शेर बहुत खूब फरमाया आपने

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  9. सुन्दर ग़ज़ल....

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  10. क्या कर्बला के बाद भी
    एक और इम्तिहान है
    गज़ल के हर शेर मोती

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  11. श्याम सखा 'श्याम'जी
    नमस्कार !
    इतने दिन बाद फिर आपके यहां आया हूं …
    राहत मिली ।
    इतरा रहे हैं आप यूं
    क्या वक्त मेहरबान है

    सहित पूरी ग़ज़ल अच्छी लगी ।

    आपको भी पर शस्वरं आने का आमंत्रण है ।

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  12. बहुत सुन्दर और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

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  13. हैं लूट राहबर रहे
    जनता क्यों बेजुबान है
    khoobsoorat sher huaa hai.
    mere blog ka url change ho gaya hai-
    www.kabhi-to.blogspot.com

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