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गर खुदा खुद से जुदाई दे
कोई क्यों अपना दिखाई दे
काश मिल जाये कोई अपना
रंजो-गम से जो रिहाई दे
जब न काम आई दुआ ही तो
कोई फिर क्योंकर दवाई दे
ख्वाब बेगाने न दे मौला
नींद तू बेशक पराई दे
तू न हातिम या फरिश्ता है
कोई क्यों तुझको भलाई दे
डूबने को हो सफीना जब
क्यों किनारा तब दिखाई दे
आँख को बीनाई दे ऐसी
हर तरफ बस तू दिखाई दे
साथ मेरे तू अकेला हो
अपनी ही बस आश्नाई दे
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बेहतरीन !
ReplyDeleteख्वाब बेगाने न दे मौला
ReplyDeleteनींद तू बेशक पराई दे
बहुत सुन्दर ।
जो हुनर श्याम को दिया उसने
ReplyDeleteकाश मुझमें कभी दिखाई दे।
बहुत बढ़िया!!
ReplyDelete`आँख को बीनाई दे ऐसी
ReplyDeleteहर तरफ बस तू दिखाई दे'
उठते नहीं है हाथ अब इस दुआ के बाद :)
बहुत खुब जी, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खुब !
ReplyDeletebehtareen rachna
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteएक आत्मचेतना कलाकार
ख्वाब बेगाने न दे मौला
ReplyDeleteनींद तू बेशक पराई दे
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..
"आँख को बीनाई दे ऐसी
ReplyDeleteहर तरफ बस तू दिखाई दे
साथ मेरे तू अकेला हो
अपनी ही बस आश्नाई दे"
बहुत खूब !