Wednesday, December 1, 2010

गुल गुलामी करे है मौसम की- दो शे‘र

सुनते हैं दिल में प्यार रहता है
फ़िर भी दिल बेकरार रहता है
गुल गुलामी करे है मौसम की
मस्त हर वक्त खार रहता है

मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

4 comments:

  1. गुल गुलामी करे मौसम की ...
    खार हमेशा मस्त रहता है ...
    खार ही क्यों न बन जाएँ सब जबकि ...
    गुलों से खार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं !

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  2. दिल में प्यार रहता है
    तभी तो उसे दिलदार कहता है :)

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  3. बहुत खूब कहा। बधाई।

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  4. बहुत खूब !

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