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खुद से तू मत बोल आधा सच
झूठ में मत तू घोल आधा सच
मच जायेगा शोर जगत में
ऐसे मत तू खोल आधा सच
बनिया है न तू है सौदागर
फिर भी रहा क्यों तोल आधा सच
झूठों का दबदबा न छाये
यूँ तो न कर तू गोल आधा सच
बोल युधिष्ठिर भान्ति न कुछ तू
देगा खोल तू पोल आधा सच
माना है इतिहास अधूरा
क्या है नहीं भूगोल आधा सच
फ़ेलु.फ़ऊल फ़ऊल फ़ऊलुन, [२,०६,05
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बनिया है न तू है सौदागर
ReplyDeleteफिर भी रहा क्यों तोल आधा सच
झूठों का दबदबा न छाये
यूँ तो न कर तू गोल आधा सच...
वाह! बहुत खूब लिखा है आपने! न कभी आधा सच बोलना चाहिए और न कभी आधा झूठ! बोलना ही हो तो हर बात पूरी कहने में ही बेहतर है! शानदार ग़ज़ल!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Kamal ki rachna likhi hai apne, jitni tarif ki jaye kam hai.
ReplyDeleteJai hind jai bharat
Kamal ki rachna likhi hai apne, jitni tarif ki jaye kam hai.
ReplyDeleteJai hind jai bharat
खूबसूरत गज़ल ..आधा सच ज्यादा कष्ट देता है
ReplyDeleteवाह श्याम जी अच्छा नापतोल के लिखा है आपने.....
ReplyDeleteवाह!! बहुत शानदार....आधे सच की दुनिया में आधे सच की बानगी.
ReplyDelete'आधे सच' की बात कहकर आपने पूरा ही सच कह दिया है.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.