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गूंगे का बयान था
तीर था कमान था
प्यार का उफान था
ग़म हुआ जवान था
छोड़ते ही घर, लगा
अपना तो जहान था
पीड़ की वो हाट थी
प्यार का मचान था
बाप था ढलान पर
सुत हुआ जवान था
घर बिका किसान का
शेष पर लगान था
फ़ाइलुन,मफ़ाइलुन ३.८.२००६
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
"छोड़ ते ही घर लगा ,अपना तो जहां था "नेनो बहर की अच्छी ग़ज़ल .
ReplyDeleteघर बिका किसान का
ReplyDeleteशेष पर लगान था
बहुत खूब ...अच्छी गज़ल
बेहतरीन...वाह!
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर और शानदार ग़ज़ल! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteराजनीति का क्षेत्र था
ReplyDeleteघोड़ा गधा समान था :)
गजब की प्रस्तुति है श्याम जी.
ReplyDeleteआपने शब्दों से ही ऐसा विस्फोट कर दिया है कि मुहँ से
'आह','बहुत खूब' और 'वाह' ही निकल पा रहा है.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
छोड़ते ही घर, लगा
ReplyDeleteअपना तो जहान था
ye sher sab se badhiya lagaa ...