Monday, August 15, 2011

वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता- gazal shyam skha

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नकाब ओढ़कर महज नकाब जिंदगी हुई
यूँ आपसे मिली कि बस खराब जिंदगी हुई

मुझे निकाल क्या दिया जनाब ने खयाल से
पड़ी हो जैसे शैल्फ पर किताब जिंदगी हुई

लगा यूँ सालने कभी अँधेरे का जो डर उसे
समूची जल उठी कि आफताब जिंदगी हुई

गुनाह में थी साथ वो तेरे सखी रही सदा
नकार तूने क्या दिया सवाब जिंदगी हुई

वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता
जो कल तलक थी आम, क्यों नवाब जिंदगी हुई

हकीकतों से क्या हुई मेरी थी दुश्मनी भला
खुदी को भूलकर फ़कत थी ख्वाब जिंदगी हुई

तेरे खयाल में रही छुई-मुई वो गुम सदा
भुला दिया यूँ तुमने तो अजाब जिन्दगी हुई

फुहार क्या मिली तुम्हारे नेह की भला हमें
रही न खार दोस्तो गुलाब जिन्दगी हुई

खुमारी आपकी चढ़ी कहूँ भला क्या ‘श्याम’ जी
बचाई मैंने खूब पर शराब जिंदगी हुई

बही में वक्त की लिखा गया क्या नाम ‘श्याम’ का
गजल रही न गीत ही कि ख्वाब जिंदगी हुई



मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन [४.२.१९९३]


मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

4 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  2. इस गज़ल पर हमारी बंदगी हुई॥

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल...हर शे‘र में आपका निराला अंदाज झलक रहा है।

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  4. हकीकतों से क्या हुई मेरी थी दुश्मनी भला
    खुदी को भूलकर फ़कत थी ख्वाब जिंदगी हुई

    बहुत अच्छी प्रस्तुति श्याम जी. मैं आपसे सम्पर्क करना चाहता था । आपने मेरे Blog -- http://vibhuti69.blogspot.com पर लिखा था--
    " अच्छी भावाभिव्यक्ति है,कुछ और कहना चाहूंगा पर सीधे मेल से अगर चाहें तो मेल करें "
    मगर आपका email address नहीं खोज पाया ।
    सर, कृपया एक बार आप मुझे मेल (vibhuti69.gmail.com) करें. जवाब के इन्तजार में---
    विभूति कुमार

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