Sunday, October 9, 2011

कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर- gazal shyamskha `shyam'


दूसरों के सर बचाने हैं तुझे तो
फिर तो तू अपनी ही जानिब मोड़ पत्थर

कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
पेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर

देखकर हालत बुतों की, हैं लगाते
टूटने की आइने से होड़ पत्थर

चिड़िया मारीं जब अहेरी हाथ में था
तू हुआ इतिहास में चितौड़ पत्थर 

है खड़ा चौराहे पर बेटा खुदा का
कायरों में तू भी है, चल छोड़ पत्थर

बीच इन्सानों के कैसे फँस गया है
दौड़ सकता है ,अगर तो,दौड़ पत्थर

’श्याम जी’ सचमुच बुरा वक्त आने को है
छत पे अपनी आप भी लें जोड़ पत्थर

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन


मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

7 comments:

  1. kamaal kar diya sir aapne, pathron me hi jaan daal di..
    behtreen rachna...
    jai hind jai bharat

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  2. तोड़ती पत्थर कविता की याद दिला दी :)

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  3. बहुत बेहतरीन...हर शेर लाजबाब!

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  4. है खड़ा चौराहे पर बेटा खुदा का
    कायरों में तू भी है, चल छोड़ पत्थर...

    लाजबाब!

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  5. देखकर हालत बुतों की, हैं लगाते
    टूटने की आइने से होड़ पत्थर
    चिड़िया मारीं जब अहेरी हाथ में था
    तू हुआ इतिहास में चितौड़ पत्थर ...
    लाजवाब शेर! उम्दा ग़ज़ल!

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  6. aapko aakashvani gorakhpur ki taraf se ek mushaire me bulana chahti hoon.kripya ph no aur address bata dein.

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  7. देखकर हालत बुतों की, हैं लगाते
    टूटने की आइने से होड़ पत्थर
    bahut sundar ...badhai

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