Wednesday, October 5, 2011

टँगे ख्वाब मेरे सलीबों पे हैं अब- gazal shyam skha shyam

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कहो मत फलक पर सितारे नहीं हैं
ये माना कि अब वो हमारे नहीं हैं

है ये छाँव छूती मेरी छत भला क्यों
कि जब पेड़ ये अब हमारे नहीं हैं

टँगे ख्वाब मेरे सलीबों पे हैं अब
यों मरियम से वो तो कुँवारे नहीं हैं

बता मुझको क्यों उठ चली ऐ हवा तू
अभी साज से सुर उतारे नहीं हैं

चलो बैठकर कर लें कुछ बातें हम-तुम
कि बेकारी में, पल उधारे नहीं हैं।

छुएँ आसमां ‘श्याम’ है उनकी हसरत
न जिनके है घर ही, चुबारे नहीं हैं

गया गुम हो बचपन कहाँ ‘श्याम’ कहिये
शरारत नहीं है गुबारे नहीं है।


फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

4 comments:

  1. टँगे ख्वाब मेरे सलीबों पे हैं अब
    यों मरियम से वो तो कुँवारे नहीं हैं

    ....बहुत लाज़वाब गज़ल......

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  2. ईसू के लिए तो एक ही सलीब काफ़ी थी :)

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  3. विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
    नवीन सी. चतुर्वेदी

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  4. bahut bahut bahut hi saandaar.. dil ko chu gayi aapki ye rachna ..
    jai hind jai bharat

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