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भीड़ का मेला अकेला आदमी हर दोस्तो
कोई पागल ही बनाएगा यहाँ घर दोस्तो
चिमनियों का हर तरफ फ़ैला धुआं है देखिये
कौन इशारे मौसमी समझे यहाँ पर दोस्तो
पंछियों को था बिजूकों से डराता आदमी
खुद से ही अब तो उसे लगने लगा डर दोस्तो
ईंट पर बुनियाद की हम शे‘र अब कैसे कहें
जब फ़्लैट अपना है मंजिल सातवीं पर दोस्तो
‘श्याम’से जब भी हो मिलना आपको ऐ‘श्याम’जी
कीजिये बातें हवा से खोलकर पर दोस्तो
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteपंछियों को था बिजूकों से डराता आदमी
ReplyDeleteखुद से ही अब तो उसे लगने लगा डर दोस्तो
श्याम जी बहुत बधाई दमदार गजल के लिए.
ईंट पर बुनियाद की हम शे‘र अब कैसे कहें
ReplyDeleteजब फ़्लैट अपना है मंजिल सातवीं पर दोस्तो
kya baat hai...bhaisaab
s-pranaam
बहुत ही दमदार गज़ल हैँ
ReplyDeleteThanx Mahich sahib
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