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चले ख्यालों के जब लश्कर
हुये बेहाल हम अक्सर
गया है टूट दिल अपना
तेरे सपनो में यूं आकर
कहां मिलते हमें गुन्चे
लिखे किस्मत में थे पत्थर
रहा बस में न दिल अपने
तुझे सामने यूं पाकर
बहुत पछताये थे ऐ‘श्याम’
हमें वो अपने घर लाकर
मफ़ाएलुन मफ़ाएलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
दिल की सलामती के लिए दुआ है ....
ReplyDeleteदाद कबूल करें .....:))
हाले दिल आपने जिस खूबसूरती से बयाँ किया है
ReplyDeleteइस पर कुछ भी कहना मुश्किल है.
कहां मिलते हमें गुन्चे
ReplyDeleteलिखे किस्मत में थे पत्थर
बढिया प्रयोग डॉक्टर साहब!
वाह श्यामजी वाह !
ReplyDeleteख़ूबसूरत अन्दाज़ .......शानदार शे'र
achhi lagi apki ghazal
ReplyDeletebhetrin waaaaaaaaaaaah
ReplyDeleteshukhriya jindgi....aapke gazlo ki kitab mene hal hi me manvai hai, mil bhi gai hai......kya gazle hai ...waaaaaaaah
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