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अभी तक सपन जो भी उर में थे लम्बित
हुए देख तुमको वे नयनों में अंकित
लजाने लगीं तितलियां बाग में तब
भंवर ने गुलों को किया जब भी चुम्बित
अचानक भरी प्यार से झोली उसकी
रहा था मुहब्बत से अब तक जो वंचित
सभी ख्वाब तो हैं बने टूटने को
किये जाते नाहक हो क्यों उनको संचित
जमाना कभी ‘श्याम’अनूठे को देखे
रहेगा खड़ा देखता वो अचम्भित
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन.फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ये लगी है
ReplyDeleteनये काफि़या से हुआ मन तरंगित।
तलाशा बहुत पर नहीं कुछ मिला है
जिसे दोष कहकर करूँ आज इंगित।
चलो आज हम भी उसी राह चल दें
सभी ने युगों से किया जिसको वंदित।
आभार भाई साहिब आपकी जर्रा-नवाजी का, हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा हेतु ४-६ गज़ल मेल कर दे, फोटो सहित,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल है बधाई।
ReplyDeleteवाह....................
ReplyDeleteअचानक भरी प्यार से झोली उसकी
ReplyDeleteरहा था मुहब्बत से अब तक जो वंचित
.....क्या बात है...श्याम जी
-- सुन्दर गज़ल... श्याम सखा जी...
ReplyDeleteदेखने में तो यूं लगती है दोषपूर्ण ये गज़ल |
मुकफ़्फ़ा-ग़ज़ल है पर हुजूरे-आला ये गज़ल |
जोर रहता है काफिया पर ही इनमें श्याम,
रदीफ के बिना ही होती है यारा ये गज़ल |
अचानक भरी प्यार से झोली उसकी
ReplyDeleteरहा था मुहब्बत से अब तक जो वंचित
बहुत ही सुन्दर काफिये.. नए हैं, सुन्दर प्रयोग है...बधाई शाम सखा जी....
4th stenja is marvellous
ReplyDeleteआभार आप सभी का गज़ल कबूलने हेतु
ReplyDeleteलजाने लगीं तितलियां बाग में तब
ReplyDeleteभंवर ने गुलों को किया जब भी चुम्बित
क्या मासूमियत और इन्तिहाई खूबसूरत तरीके से मुहब्बत को रंग दिया है आपने... श्याम जी बधाई स्वीकारें.