दोस्त लुत्फे इन्तजार अपना यूं ही जाता रहा
हाय! वो कमबख्त हरदम वक्त पर आता रहा
जिसके भी हाथों में गुलदस्ते हम थमाते रहे
उसके ही हाथों में पत्थर बारहा आता रहा
जुल्म ढ़ाकर भी उसे था इस कदर हम पर यकीं
अपने हक में वो गवाही हमसे दिलवाता रहा
वो था मानिन्दे कसम तो मैं भी वादे की तरह
बारी-बारी वक्त, हम दोनो को चटकाता रहा
बात उसकी तो हर इक थी अपने सर-माथे.मगर
मेरी हर अर्जे-तमन्ना पर वो झुंझलाता रहा
ऐ मुहब्बत! मेहरबानी खूब है हम पर तेरी
हमने जिस जालिम को चाहा,वो ही तड़पाता रहा
‘श्याम’बज़्मे-जिन्दगी में इक शिकस्ता दिल लिये
बांसुरी पर दिल की,नग्मे दर्द के गाता रहा
हाय! वो कमबख्त हरदम वक्त पर आता रहा
जिसके भी हाथों में गुलदस्ते हम थमाते रहे
उसके ही हाथों में पत्थर बारहा आता रहा
जुल्म ढ़ाकर भी उसे था इस कदर हम पर यकीं
अपने हक में वो गवाही हमसे दिलवाता रहा
वो था मानिन्दे कसम तो मैं भी वादे की तरह
बारी-बारी वक्त, हम दोनो को चटकाता रहा
बात उसकी तो हर इक थी अपने सर-माथे.मगर
मेरी हर अर्जे-तमन्ना पर वो झुंझलाता रहा
ऐ मुहब्बत! मेहरबानी खूब है हम पर तेरी
हमने जिस जालिम को चाहा,वो ही तड़पाता रहा
‘श्याम’बज़्मे-जिन्दगी में इक शिकस्ता दिल लिये
बांसुरी पर दिल की,नग्मे दर्द के गाता रहा
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
दोस्त लुत्फे इन्तजार अपना यूं ही जाता रहा
ReplyDeleteहाय! वो कमबख्त हरदम वक्त पर आता रहा
जिसके भी हाथों में गुलदस्ते हम थमाते रहे
उसके ही हाथों में पत्थर बारहा आता रहा
BAHUT SUNDR LAINE,AABHAR.
जुल्म ढ़ाकर भी उसे था इस कदर हम पर यकीं
ReplyDeleteअपने हक में वो गवाही हमसे दिलवाता रहा
अच्छा है !! बेहतरीन ग़ज़ल है भाई !!
जुल्म ढ़ाकर भी उसे था इस कदर हम पर यकीं
ReplyDeleteअपने हक में वो गवाही हमसे दिलवाता रहा
Waah!! laajawab peshkash....Aabhar!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
धमेशा की तरह लाजवाब गज़ल के लिये बधाई
ReplyDeleteबात उसकी तो हर इक थी अपने सर-माथे.मगर
ReplyDeleteमेरी हर अर्जे-तमन्ना पर वो झुंझलाता रहा
behatareen.
जुल्म ढ़ाकर भी उसे था इस कदर हम पर यकीं
ReplyDeleteअपने हक में वो गवाही हमसे दिलवाता रहा
waah bahut khoobsurat sher
shaandaar gazal
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
ReplyDeleteवो था मानिन्दे कसम तो मैं भी वादे की तरह
ReplyDeleteबारी-बारी वक्त, हम दोनो को चटकाता रहा
बात उसकी तो हर इक थी अपने सर-माथे.मगर
मेरी हर अर्जे-तमन्ना पर वो झुंझलाता रहा
दिल खुश कर दित्ता :)
बहुत ही सुंदर जी
ReplyDeleteधन्यवाद
जुल्म ढ़ाकर भी उसे था इस कदर हम पर यकीं
ReplyDeleteअपने हक में वो गवाही हमसे दिलवाता रहा
वाह श्याम जी वाह...इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें...
नीरज
ऐ मुहब्बत! मेहरबानी खूब है हम पर तेरी
ReplyDeleteहमने जिस जालिम को चाहा,वो ही तड़पाता रहा
ek se badh kar ek umda sher..
प्रणाम ...
ReplyDeleteबड़े दिनों बाद शुभ अवसर मिला आपके ब्लॉग पर आने का | हमेशा की तरह ख़ूबसूरत ग़ज़ल ... मतला ही दिल जीत गया !
दोस्त लुत्फे इन्तजार अपना यूं ही जाता रहा
हाय! वो कमबख्त हरदम वक्त पर आता रहा
बहुत खूब !