सबको खूब खला था वो
मानुष एक भला था वो
काटा जितनी बार गया
उतनी बार फला था वो
रीझ गई वृषभानुलली
आखिर नन्दलला था वो
जिसने जैसा ढाला था
वैसा ठीक ढ़्ला था वो
मन्जिल खुद ही आ पहुंची
गिर-गिर कर संभला था वो
सबके गम लेकर भागा
सबके गम लेकर भागा
कह्ते सब पगला था वो
याद करे है अब भी ‘श्याम’
यू इक बार मिला था वो71/d b gm
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बेहतरीन ग़ज़ल| किस शेर की तारीफ की जाय समझ में नही आ रहा है..हर शेर आपकी उस्तादी को बखूबी बयाँ कर रहे है| दाद कबूलिये|
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया इस खूबसूरत ग़ज़ल को पढवाने के लिए|
ब्रह्माण्ड
सबके गम लेकर भागा
ReplyDeleteकह्ते सब पगला था वो
लाजबाब .....
ख़ला में घूमता भला लगा था वो :)
ReplyDeleteumda gazal !
ReplyDeleteToo Good... Great !!!!
ReplyDeleteभला था , इसीलिए याद आता है वो ।
ReplyDeleteबढ़िया रचना ।
मेरा दिल कहता है-
ReplyDeleteटिपण्णी से परे खूबसूरत ग़ज़ल के लिए धन्यवाद्
श्याम भाई
ReplyDeleteक्या शेर निकाला है....शेर क्या कलेजा निकाल कर रख दिया मोहतरम.... दाद क़ुबूल फरमाएं
काटा जितनी बार गया
उतनी बार फला था वो
जितनी बार पढता हूँ उतने बार फिर पढने का जी चाहता है...वाह वाह...!
काटा जितनी बार गया
ReplyDeleteउतनी बार फला था वो
bahut payara sher huaa hai. badhaee
सबके गम लेकर भागा
ReplyDeleteकह्ते सब पगला था वो
दूसरों का गम लेने वाले पागल माने जाते.....
सचमुच मान को छूने वाली रचना
सबके गम लेकर भागा
ReplyDeleteकह्ते सब पगला था वो
bahut hi accha sher hai ghazal ka..Soch ki gahraai rang layi hai