Sunday, December 19, 2010

देख लो तुम मुझे सजा देकर- गज़ल

5 [म.ऋ]
आज कुछ कर गुजरने वाला हूँ
बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ

तोड़ दो कसमें, दो भुला वादे
मैं तो खुद भी मुकरने वाला हूँ

टूटकर बिखरा हूं इस तरह यारो
अब कहाँ मैं संवरने वाला हूँ


जिन्दगी कर दे हसरतें पूरी
खुदकुशी अब मैं करने वाला हूँ

देख लो तुम मुझे सजा देकर
मै भला कब सुधरने वाला हूँ


फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन



मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

7 comments:

  1. बहुत खूब,
    टूटकर बिखरा हूं इस तरह यारो
    अब कहाँ मैं संवरने वाला हूँ
    कमाल का शेर|

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  2. देख लो तुम मुझे सजा देकर
    मै भला कब सुधरने वाला हूँ

    क्या बात है ! बहुत सुन्दर !

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  3. आपकी ग़ज़ल ने कुछ ऐसी उर्जा दे दी कि लीजिये कुछ फटाफट शेर।
    धमकियॉं इस तरह न दो मुझको
    मैं कहॉं इनसे डरने वाला हूँ।
    बस जरा देर और ठहर जा तू
    तेरे दिल में उतरने वाला हूँ।
    मुझको ऐसे नहीं तो कोसा कर
    हूँ मुकद्दर, सँवरने वाला हूँ।
    मानता हूँ कि मॉंग सूनी है
    सब्र कर, मैं ही भरने वाला हूँ।
    राख को देखकर लगा मुझको
    मैं तो बस बात करने वाला हूँ।

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  4. तिलक राज जी ने उसी तर्ज़ में असल बात कह दी ।

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  5. `मैं तो खुद भी मुकरने वाला हूँ'

    ये तो अच्छी बात नहीं डॊक्टर साहब :)

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  6. "आज कुछ कर गुजरने वाला हूँ
    बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ"

    आमीन !
    बेहतरीन खयाल और अश’आर

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