आस इक भी अगर फली होती
जिन्दगी तू बहुत भली होती
यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
बगिया माली ने गर छली होती
मांग लेते तुझे सितारों से
उसके आगे अगर चली होती
ढलती आँसू की बूंद मोती में
जो न अच्छी घड़ी टली होती
स्नेह-भर जो हमें मिला होता
फिर न कोई कमी खली होती
गर मिली यार की गली होती
शोख-चंचल मेरी तबियत हैं
लेखनी क्यों न मनचली होती
कौन झुकता यूँ तेरे आगे ‘श्याम’
उम्र तेरी जो न ढली होती
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
अच्छी ग़ज़ल, बधाई!!!
ReplyDeleteवाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
ReplyDeletesundar gazal ban padi hai ...
ReplyDeleteअच्छी!क्या सुन्दर ग़ज़ल बधाई!!!
ReplyDeleteयूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
ReplyDeleteबगिया माली ने गर छली होती
देश को देखें तो हर माली ने इसे छला है।
एक शायर सी मनचली होती,
तो ये दुनिया बहुत भली होती।
BADHIYA GAZAL...IS UMDA GAZAL KE LIYE BADHAI
ReplyDeleteवाह वाह वाह...बेहद भावपूर्ण !!!
ReplyDeleteसभी शेर मन मुग्ध करने लायक...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने...
पढवाने के लिए आभार..
आस इक भी अगर फली होती
ReplyDeleteजिन्दगी तू बहुत भली होती
क्या बात है श्याम जी. मतला ही बहुत खूबसूरत है.
यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
ReplyDeleteबगिया माली ने गर छली होती
बढिया शे’र डॊक्टर साहब॥
्गज़ल कबूलने हेतु आप सभी मित्रों का आभार-शब्दों से नहीं दिल से,
ReplyDeleteश्याम सखा,