Wednesday, January 12, 2011

यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा -gazal

6  [म.ऋ]

आस इक भी अगर फली होती
जिन्दगी तू बहुत भली होती

यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
बगिया माली ने गर छली होती

मांग लेते तुझे सितारों से
उसके आगे अगर चली होती

ढलती आँसू की बूंद मोती में
जो न अच्छी घड़ी टली होती

स्नेह-भर जो हमें मिला होता 


फिर न कोई कमी खली होती

कोसता मैं न अपनी किस्मत को
गर मिली यार की गली होती

 शोख-चंचल मेरी तबियत हैं  
 लेखनी क्यों न  मनचली होती

कौन झुकता यूँ तेरे आगे ‘श्याम’
 उम्र तेरी जो न  ढली होती


फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन


मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

10 comments:

  1. वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!

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  2. अच्छी!क्या सुन्दर ग़ज़ल बधाई!!!

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  3. यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
    बगिया माली ने गर छली होती
    देश को देखें तो हर माली ने इसे छला है।
    एक शायर सी मनचली होती,
    तो ये दुनिया बहुत भली होती।

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  4. वाह वाह वाह...बेहद भावपूर्ण !!!

    सभी शेर मन मुग्ध करने लायक...बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने...

    पढवाने के लिए आभार..

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  5. आस इक भी अगर फली होती
    जिन्दगी तू बहुत भली होती
    क्या बात है श्याम जी. मतला ही बहुत खूबसूरत है.

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  6. यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
    बगिया माली ने गर छली होती

    बढिया शे’र डॊक्टर साहब॥

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  7. ्गज़ल कबूलने हेतु आप सभी मित्रों का आभार-शब्दों से नहीं दिल से,
    श्याम सखा,

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