Sunday, January 30, 2011

तुम तो पहलू में थे मगर-gazal


इतने नाजुक  सवाल मत पूछो
क्यों हूँ   बरबादहाल मत पूछो

बात है    गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या  अकाल मत पूछो

करो तदबीर   अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो

तेग का वार,  गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो

काम क्या आई धुप अँधेंरो में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो

वक्त ने जिन्दगी को बख्शे हैं
कैसे -कैसे  वबाल मत पूछो

तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
थी ये अपनों की चाल मत पूछो

देखकर    खुशगवार मौसम को
मन है कितना निहाल मत पूछो

तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
गम हुऐ   क्यों बहाल  मत पूछो

कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो

श्यामसे पूछ लो जमाने की
सिर्फ उसका ही हाल मत पूछो 
[ फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन ]



मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

12 comments:

  1. गांव शहर और इंसानी बदहाली का हाल पूछती-टटोलती यह गज़ल एक शानदार अभिव्यक्ति है..सादर

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  2. नए अंदाज़ में एक बेहतरीन गज़ल. आभार .

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  3. बहुत सुन्दर, मन प्रशन्न हो गया
    बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी


    कब उठ कर चल दिए, मत पूछॊ :)

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  5. तुम क्या शिकस्त दे पाते
    ये तो है अपनों की चाल मत पूछो
    क्या बात है ।

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  6. तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
    थी ये अपनों की चाल मत पूछो----क्या बात है....

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  7. तेग का वार, गैर का था मगर
    किसने छीनी थी ढाल मत पूछो

    ...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर दिल को छू लेता है..

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  8. क्या कहूँ, हर शेर लाजवाब है ... बेहतरीन ग़ज़ल ... मुझे यह शेर खास कर पसंद आया -
    बात है गाँव की तबाही की
    बाढ़ थी या अकाल मत पूछो

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  9. वाह...सभी शेर एक से बढ़कर एक..लाजवाब...

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल...

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  10. गज़ल कबूलने हेतु आप सभी को धन्यवाद

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  11. करो तदबीर अब निकलने की
    किसने डाला था जाल मत पूछो

    तेग का वार, गैर का था मगर
    किसने छीनी थी ढाल मत पूछो


    वाह वाह! दिल से निकले हैं सब शेर...........आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा

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