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इतने नाजुक सवाल मत पूछो
क्यों हूँ बरबादहाल मत पूछो
बात है गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या अकाल मत पूछो
करो तदबीर अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो
तेग का वार, गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो
काम क्या आई धुप अँधेंरो में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो
वक्त ने जिन्दगी को बख्शे हैं
कैसे -कैसे वबाल मत पूछो
तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
थी ये अपनों की चाल मत पूछो
देखकर खुशगवार मौसम को
मन है कितना निहाल मत पूछो
तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
गम हुऐ क्यों बहाल मत पूछो
कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो
‘श्याम’ से पूछ लो जमाने की
सिर्फ उसका ही हाल मत पूछो
[ फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन ]
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
गांव शहर और इंसानी बदहाली का हाल पूछती-टटोलती यह गज़ल एक शानदार अभिव्यक्ति है..सादर
ReplyDeleteनए अंदाज़ में एक बेहतरीन गज़ल. आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, मन प्रशन्न हो गया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
ReplyDeleteकब उठ कर चल दिए, मत पूछॊ :)
तुम क्या शिकस्त दे पाते
ReplyDeleteये तो है अपनों की चाल मत पूछो
क्या बात है ।
तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
ReplyDeleteथी ये अपनों की चाल मत पूछो----क्या बात है....
बहुत खूब...
ReplyDeleteतेग का वार, गैर का था मगर
ReplyDeleteकिसने छीनी थी ढाल मत पूछो
...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर दिल को छू लेता है..
क्या कहूँ, हर शेर लाजवाब है ... बेहतरीन ग़ज़ल ... मुझे यह शेर खास कर पसंद आया -
ReplyDeleteबात है गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या अकाल मत पूछो
वाह...सभी शेर एक से बढ़कर एक..लाजवाब...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल...
गज़ल कबूलने हेतु आप सभी को धन्यवाद
ReplyDeleteकरो तदबीर अब निकलने की
ReplyDeleteकिसने डाला था जाल मत पूछो
तेग का वार, गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो
वाह वाह! दिल से निकले हैं सब शेर...........आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा