18
हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें
थीं करनी तुमसे मुझे बेहिसाब-सी बातें
हो तुम भी, हम भी हैं जब साफगो, उठीं फिर क्यों
हमारे बीच बताओ नकाब-सी बातें
बगैर जाम के मदहोश कर दिया उसने
रहा वो करता ही हर पल शराब-सी बातें
इलाही तुम ही हो क्या रूबरू मेरे सचमुच
हकीकतो में भी होती हैं ख्वाब-सी बातें
खुदा का जिक्र ही होता है कब जहाँ में अब
यहाँ तो होती हैं बस अब अजाब-सी बातें
समझना ‘श्याम’ को आसां नहीं कभी यारो
करे है वो तो सदा बस किताब-सी बातें
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
हैं उठ रहीं मेरे मन में खराब-सी बातें
थीं करनी तुमसे मुझे बेहिसाब-सी बातें
हो तुम भी, हम भी हैं जब साफगो, उठीं फिर क्यों
हमारे बीच बताओ नकाब-सी बातें
बगैर जाम के मदहोश कर दिया उसने
रहा वो करता ही हर पल शराब-सी बातें
इलाही तुम ही हो क्या रूबरू मेरे सचमुच
हकीकतो में भी होती हैं ख्वाब-सी बातें
खुदा का जिक्र ही होता है कब जहाँ में अब
यहाँ तो होती हैं बस अब अजाब-सी बातें
समझना ‘श्याम’ को आसां नहीं कभी यारो
करे है वो तो सदा बस किताब-सी बातें
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बेहतरीन ग़ज़ल!
ReplyDeleteइलाही तुम ही हो क्या रूबरू मेरे सचमुच
ReplyDeleteहकीकतो में भी होती हैं ख्वाब-सी बातें
बहुत सुन्दर गज़ल
शर्मो-हया का पर्दा उठ गया
ReplyDeleteतो फिर कहां हिजाब-सी बातें :)
nice collection....
ReplyDelete