छंद आनन्द का प्रतीक होता है।.
छंद का उल्लेख सबसे पहले वेदों में हुआ है। छंद से जुड़कर साधारण बातें में गति व यति का आर्विभाव होने लगता है।
गति व यति से रस उत्पन्न होता है। यह रस ही आनन्द कहलाता है।
संसार भर की सभी भाषाएं छंद में ही जीवित रह पाईं हैं- जैसे इजराइल के देश बनने से पहले हिब्रु भाषा ,दुनिया भर में बिखरे यहुदियों की प्राथना भजनो में ही बची थी।
आज देवभाषा संस्कृत भी उसी ओर जा रही है। कुछ दिनो बाद यह केवल वेद उपनिषदों, पौराणिक श्लोकों में ही बच पाएगी।
छंद, भाषा, संस्कृति, कविता या सभ्यता जितना ही पुराना है।
छंद है क्या?
आइये! देखें \
भारतीय समय गिनने की प्रकिर्या को समझने का प्रयास करने से छंद को समझने में सहायक होगा।
दस दीर्घमात्रिक शब्द बोलने पर जितना समय लगता है==== १ सासं या प्राण कहलाता है
६ प्राण=== १ पल
६० पल === १ घड़ी
६० घड़ी==== १ दिन
२.५ घड़ी====== १ घंटा === ९०० सांस या प्राण
१ मिनट== १५ सांस
छ्ंद के उच्चारण से सांस की गति एक तान हो जाती है।
मन स्थिर हो जाता है एवम् ध्यान की क्षमता पा जाता है।
ध्यान से चेतना में नवांतर हो हो जाता है और फ़िर मस्तिष्क का अणु-अणु जीवंत हो उठता है।
छंद जब अन्तर्मन से उठता है तो जीवन अर्थवान होने लगता है।
इस प्रकार छंद की पुनरावृति [ जाप ]नये अर्थ का वाहक बनकर प्रगट होती है।
छंद की पुनरावृति से मानव की नकारात्मकता, सकारात्मकता में बदलने लगती है।
इस अवस्था को ही समाधि कहा जाता है।
शरीर में प्राण व मन ही निर्णय करने वाले होते हैं।
जब मन गलत निर्णय लेता है तो प्राण [ सांस ] की गति बढ जाती है,
गुस्से व झूठ बोलते वक्त- [यही तथ्य लाई-डिक्टेटिंग मशीन का आधार है]
छंद के उपयोग से ही शरीर में सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है- जो मन को नवान्तर या समाधि की अवस्था में ले जाता है।
लिपिबद्ध छंद ही मन्त्र कहलाता है। मन्त्र का शाब्दिक अर्थ है-- मन की बात
छंद मन व तन में सकारात्मक संवाद करवाता है
छंद [ मन्त्र ] के सस्वर उच्चारण से वातावरण में ऊर्जा उत्पन्न होकर वायुमंडल में फ़ैलती है।, जिससे तरंगे उत्पन्न होकर आसपास को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लेती हैं। ऐसा अनुभव सभी को, किसी संगीत के महफ़िल या भजन संध्या पर अकसर हुआ होगा।
छंदो के जाप से उत्पन्न ध्वनि ऊर्जा व तरंगे साफ़ अनुभव की जा सकती हैं। इस अनुभव की सतत अनूभूति ही समाधि की अवस्था कहलाती है।
य़ही नही इस अवस्था प्राप्त व्यक्ति के समीप भी इस ऊर्जा को अनुभव किया जा सकता है।
इसी वजह से संसार के सभी धर्मों में जाप का प्रचलन हुआ है
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लगा ! शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteडॉ0 साहब, अच्छी जानकारी है । बधाई
ReplyDeleteअच्छी जानकारी.... हर लिपिबद्ध छंद... मन्त्र नहीं होता...हर मन्त्र ..छंद होता है...
ReplyDelete-- मंत्र का अर्थ है मन का तंत्र, मन को संचालित करने की विधि। मन का त्राण करने वाला छंद...
--वैदिक ऋचाओं के प्रत्येक छन्द भी मंत्र कहे जाते हैं। तथा देवी-देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन में निश्चित किए गए शब्द समूहों को भी मंत्र कहा जाता है...
आप सभी का आभार। आदरणीय डॉ० गुप्ता जी चार वेदों में एक वेद ऐसा भी है जिसकी ऋचाएं [ मंत्र [ छंद नहीं हैं। यहां हर लिपिबद्ध छंद को मंत्र कहने का मन्तव्य यही है कि हर लिपिबद्ध छंद रचना का प्रभाव मंत्र सरीखा होता है। यानि अगर हमें कोई भाषा न भी आती हो तो भी, उस भाषा की कोई छंदबद्ध रचना सुनने का प्रभाव मन्त्र सरीखा ही होता है ,जैसे किसी धार्मिक मंत्र का होता है।
ReplyDeleteनई जानकारी के लिए आभार डॉक्टर साहब॥
ReplyDeleteमन की खोज किसने की?
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