Sunday, January 30, 2011

तुम तो पहलू में थे मगर-gazal


इतने नाजुक  सवाल मत पूछो
क्यों हूँ   बरबादहाल मत पूछो

बात है    गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या  अकाल मत पूछो

करो तदबीर   अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो

तेग का वार,  गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो

काम क्या आई धुप अँधेंरो में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो

वक्त ने जिन्दगी को बख्शे हैं
कैसे -कैसे  वबाल मत पूछो

तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
थी ये अपनों की चाल मत पूछो

देखकर    खुशगवार मौसम को
मन है कितना निहाल मत पूछो

तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
गम हुऐ   क्यों बहाल  मत पूछो

कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो

श्यामसे पूछ लो जमाने की
सिर्फ उसका ही हाल मत पूछो 
[ फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन ]



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Monday, January 24, 2011

उम्र गीली हो गई अपनी धुआं-सी जिन्दगी


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भीड़ में रह कर भी है खाली मकां-सी जिन्दगी
दोस्तो हमको लगी है    इम्तिहां-सी जिन्दगी

लाश की मानिन्द ढोती   तू रही अक्सर मुझे
झाड़ कर पल्ला है क्यां हैरतकुनां-सी जिन्दगी

क्यों भटकती फिर रही है जा--जा कुछ तो बता
करके घर तामीर भी है   तू दुकां-सी जिन्दगी

गिर गये हैं जब से हम तेरी निगाहों से सनम
है लगे हमको तो अपनी  बदगुमां-सी जिन्दगी

गुफ्तगू जब से हुई है   खत्म अपनी, आपसे
रह गई है बन के गूंगे  का बयां-सी जिन्दगी

गाँव से आई थी, तोहफा सादगी का तब थी तू
शहर आकर  हो गई   तू हुक्मरां-सी जिन्दगी

थी तमन्नाश्यामकी बन शमअ-सा जलता रहे
उम्र गीली  हो गई अपनी     धुआं-सी जिन्दगी

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलु


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Monday, January 17, 2011

इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ.......गज़ल

4
मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी

हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती को ही
खुद मौत माँगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी

हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी

सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी

नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी

हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी


मुस्तफ़इलुन= चार बार 


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Wednesday, January 12, 2011

यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा -gazal

6  [म.ऋ]

आस इक भी अगर फली होती
जिन्दगी तू बहुत भली होती

यूँ थिरकती, महकती क्या ये हवा
बगिया माली ने गर छली होती

मांग लेते तुझे सितारों से
उसके आगे अगर चली होती

ढलती आँसू की बूंद मोती में
जो न अच्छी घड़ी टली होती

स्नेह-भर जो हमें मिला होता 


फिर न कोई कमी खली होती

कोसता मैं न अपनी किस्मत को
गर मिली यार की गली होती

 शोख-चंचल मेरी तबियत हैं  
 लेखनी क्यों न  मनचली होती

कौन झुकता यूँ तेरे आगे ‘श्याम’
 उम्र तेरी जो न  ढली होती


फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन


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Monday, January 10, 2011

फ़ुटकर शे‘र- श्याम सखा ‘श्याम’

जो शख्स दर्द की आबो-हवा को जानता है
वही तो आज के दौरे-खुदा को जानता है
है देखलेता है बिना खोले ही जो जख़्मो को
वही हरेक मरज़ की दवा को जानता है

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Tuesday, January 4, 2011

सादगी को कौन पूछे है यहाँ अब-gazal

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जिन्दगी है जब मियाँ तो गम भी होंगे
आज ज्यादा हैं तो कल ये कम भी होंगे

इन्तजार अब तो कयामत का हमें है
मौला होगा, तुम भी होंगे, हम भी होंगे

जिन्दगी होगी सुहानें गीत होंगे
आ गई गर मौत तो मातम भी होंगे

मेरे नग्मो में घुले- हैं रंजो-ग़म वो
सुनके जिनको नयन सबके नम भी होंगे

सादगी को कौन पूछे है यहाँ अब
गेसुओं में उसके पेचो-खम भी होंगे

है रकीबों का बसेरा गर यहाँ पर
साथ उनके  तो मेरे हमदम भी होंगे

हो गया चिथड़े सभी के साथ वो भी
बाँधे उसने तन पे अपने बम भी होंगे


फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन


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