4
दर्द तो जीने नहीं देता मुझे
और मैं मरने नहीं देता उसे
रूठने का गर मुझे होता पता
क्या न मैं खुद ही मना लेता तुझे
धड़कनों पर सख्त पहरा उसका है
खुदकुशी करने नहीं देता मुझे
पर कतर देता है मेरे इस तरह
वो कभी उडऩे नहीं देता मुझे
ख्वाब दिखलाता तो है उनमें मगर
रंग भी भरने नहीं देता मुझे
मैं अगर तुझको न करता प्यार तो
दिल ही तेरा खुद बता देता तुझे
थाम लेता है मुझे मेरा ज़मीर
शर्म से झुकने नहीं देता मुझे
खुद ही था जब चोर मेरे मन में तो
फिर भला कैसे गिला देता तुझे
याद आ-आकर उड़ा जाता है नींद
खुशनुमा सपने नहीं देता मुझे
मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
वो सुधरने भी नहीं देता मुझे
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
गैर-मुर्द्द्फ़ गज़ल
पर कतर देता है मेरे इस तरह
ReplyDeleteवो कभी उडऩे नहीं देता मुझे
YE SHER TO KHUB KAHI AAPNE...DHERO BADHAAEE AAPKO. ..SAHIB..
ARSH
बहुत ख़ूब!
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
धड़कनों पर सख्त पहरा उसका है
ReplyDeleteखुदकुशी करने नहीं देता मुझे
" waah! kmaal ki abhivykti.... super.."
Regards
थाम लेता है मुझे मेरा ज़मीर
ReplyDeleteशर्म से झुकने नहीं देता मुझे
क्या बात है...वाह...
नीरज
याद आ-आकर उड़ा जाता है नींद
ReplyDeleteखुशनुमा सपने नहीं देता मुझे
मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
वो सुधरने भी नहीं देता मुझे
वाह! बहुत खूब।
वाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteक्या बात है...वाह...वाह...वाह...
अति सुन्दर भाव्व्यक्ति
चन्द्र मोहन गुप्त
"मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे/वो सुधरने भी नहीं देता मुझे"
ReplyDeleteक्या खूब श्याम साब....क्या खूब
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ... अच्छी रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteख्वाब दिखलाता तो है उनमें मगर
ReplyDeleteरंग भी भरने नहीं देता मुझे
मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
वो सुधरने भी नहीं देता मुझे
Yeh do ashaar bahut pasand aaye!
Pranaam
RC
पर कतर देता है मेरे इस तरह
ReplyDeleteवो कभी उडऩे नहीं देता मुझे