Wednesday, March 25, 2009

वो सुधरने भी नहीं देता मुझे

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दर्द तो जीने नहीं देता मुझे
और मैं मरने नहीं देता उसे

रूठने का गर मुझे होता पता
क्या न मैं खुद ही मना लेता तुझे

धड़कनों पर सख्त पहरा उसका है
खुदकुशी करने नहीं देता मुझे

पर कतर देता है मेरे इस तरह
वो कभी उडऩे नहीं देता मुझे

ख्वाब दिखलाता तो है उनमें मगर
रंग भी भरने नहीं देता मुझे

मैं अगर तुझको न करता प्यार तो
दिल ही तेरा खुद बता देता तुझे

थाम लेता है मुझे मेरा ज़मीर
शर्म से झुकने नहीं देता मुझे

खुद ही था जब चोर मेरे मन में तो
फिर भला कैसे गिला देता तुझे

याद आ-आकर उड़ा जाता है नींद
खुशनुमा सपने नहीं देता मुझे

मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
वो सुधरने भी नहीं देता मुझे

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
गैर-मुर्द्द्फ़ गज़ल

10 comments:

  1. पर कतर देता है मेरे इस तरह
    वो कभी उडऩे नहीं देता मुझे

    YE SHER TO KHUB KAHI AAPNE...DHERO BADHAAEE AAPKO. ..SAHIB..

    ARSH

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  2. धड़कनों पर सख्त पहरा उसका है
    खुदकुशी करने नहीं देता मुझे

    " waah! kmaal ki abhivykti.... super.."

    Regards

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  3. थाम लेता है मुझे मेरा ज़मीर
    शर्म से झुकने नहीं देता मुझे
    क्या बात है...वाह...
    नीरज

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  4. याद आ-आकर उड़ा जाता है नींद
    खुशनुमा सपने नहीं देता मुझे

    मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
    वो सुधरने भी नहीं देता मुझे
    वाह! बहुत खूब।

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  5. वाह! बहुत खूब।
    क्या बात है...वाह...वाह...वाह...
    अति सुन्दर भाव्व्यक्ति

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  6. "मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे/वो सुधरने भी नहीं देता मुझे"
    क्या खूब श्याम साब....क्या खूब

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  7. बहुत सुंदर भावाभिव्‍यक्ति ... अच्‍छी रचना के लिए बधाई।

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  8. ख्वाब दिखलाता तो है उनमें मगर
    रंग भी भरने नहीं देता मुझे

    मैं बिगड़ जाऊँ गवारा कब उसे
    वो सुधरने भी नहीं देता मुझे

    Yeh do ashaar bahut pasand aaye!

    Pranaam
    RC

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  9. पर कतर देता है मेरे इस तरह
    वो कभी उडऩे नहीं देता मुझे

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