कुछ भी कहना पाप हुआ
जीना भी अभिशाप हुआ
मेरे वश में था क्या कुछ ?
सब कुछ अपने आप हुआ
तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ
कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ
दर्द सुना जिसने मेरा
जब तक ना आलाप हुआ
शीश झुकाया ना जिसने
वो राना प्रताप हुआ
पैसा- पैसा- पैसा ही
सम्बन्धों का माप हुआ
इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ
इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
ReplyDeleteसिर्फ अगूंठा-छाप हुआ..........
मन की व्यथा को बहुत सही प्रस्तुत किया है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
दर्द सुना जिसने मेरा
ReplyDeleteजब तक ना आलाप हुआ
बहोत खूब कही आपने ये ग़ज़ल...ये शे'र खासा पसंद आया ... ढेरो बधाइयां कुबूल करें...
अर्श
शीश झुकाया ना जिसने
ReplyDeleteवो राना प्रताप हुआ
पैसा- पैसा- पैसा ही
सम्बन्धों का माप हुआ
इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ
बहुत बढ़िया।
bahut khuub
ReplyDeleteकुछ भी कहना पाप हुआ
जीना भी अभिशाप हुआ
मेरे वश में था क्या कुछ ?
सब कुछ अपने आप हुआ
तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ
कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ
sundar!
अयहय श्याम साब "तुमको देखा सपने में/मन ढोलक की थाप हुआ"
ReplyDeleteक्या बात है...वाह
और ये शेर "शीश झुकाया ना जिसने/वो राना प्रताप हुआ" वाह वाह
दिल से
Toooooo Good shyaam ji...
ReplyDeleteVery good...mazaa aa gaya padh kar...
Wah kai dino ki fursat ke baad aay sir ji,
ReplyDeleteKyu nahi aaya bas iska "Pashchtaap hua"..
तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ
कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ
sabhi sher lajawaab. wah.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ।
ReplyDeleteकविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लिए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
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इस ग़ज़ल को पढ़कर मेरे यह विचार हैं ...
ReplyDeleteअब मैं ये कहना बंद कर देती हूँ के गजल अच्छी लगी :-) इसे तो मान कर ही चलते हैं ... !
Yeh ashaar khaas achche lage -
मेरे वश में था क्या कुछ ?
सब कुछ अपने आप हुआ
तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ
(too good!)
कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ
इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ
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दर्द सुना जिसने मेरा
जब तक ना आलाप हुआ
Finding hard to understand this ...
Pranaam
RC
इतना पढ्कर भी श्याम
ReplyDeleteअंगूठा छाप हुआ.
-बहुत सटीक है, पर इतना पढ्ने का
दम्भ झलकता है.
- अन्यथा न लें। दिल की ही तो बात है।
डा श्यम गुप्त
श्याम सखाजी,
ReplyDeleteआपका यह कहना ठीक है कि कविता छंन्द से हुई । पर अतुकान्त , मुक्त छंन्द भी छंद ही हें। वस्तुतः पाठक कविता से दूर मुक्त छंन्द के कारण नहीं, कवियों द्वारा निरर्थक कविता, निराशय कविता व सामाजिक सरोकारों को भूल्ने के कारण दूर हुए हैं।
गज़ल के जा्म ओ मीना व सामयिक ,सामाजिक विषय के कारण वे प्रशिद्ध हो रहीं हैं।
सन्सार के सर्व् श्रेश्ठ गीत ,साम गीत अतुकन्त हैं। मेरे अगले ब्लोग मैं मेरे अतुकान्त ,लय्बद्ध गीत क्रिपा कर के देखें। बताएं।