गम दिये , दी खुशी
शुक्रिया जिन्दगी
तम हुआ खत्म तब
जब दिखी रोशनी
यूं जतन लाख थे
बात पर कब बनी
मर मिटे हैं सभी
वाह री सादगी
दर्द ज्यों-ज्यों बढ़ा
बढ़ गई बन्दगी
हर घड़ी बज रही
धड़कने हैं सखा
ध्यान से सुन ज़रा
मौत की दुंदभी
सभ्यता खा गई
ये नई रोशनी
दे गई , मौत को
मात फिर जिन्दगी
है नहीं 'श्याम' क्या
सिरफ़िरा आदमी
शुक्रिया जिन्दगी
तम हुआ खत्म तब
जब दिखी रोशनी
यूं जतन लाख थे
बात पर कब बनी
मर मिटे हैं सभी
वाह री सादगी
दर्द ज्यों-ज्यों बढ़ा
बढ़ गई बन्दगी
हर घड़ी बज रही
धड़कने हैं सखा
ध्यान से सुन ज़रा
मौत की दुंदभी
सभ्यता खा गई
ये नई रोशनी
दे गई , मौत को
मात फिर जिन्दगी
है नहीं 'श्याम' क्या
सिरफ़िरा आदमी
गम दिये , दी खुशी
ReplyDeleteशुक्रिया जिन्दगी
तम हुआ खत्म तब
जब दिखी रोशनी
बहुत खूब सर जी ।
Waah !! Bahut sundar rachna....
ReplyDeleteitne chote se behar main apne ko badhne ke bavzood itna kuch keh gaye?
ReplyDeletewah gurudev....
"दर्द ज्यों-ज्यों बढ़ा
बढ़ गई बन्दगी"
gagar mein sagar...
यूं जतन लाख थे
ReplyDeleteबात पर कब बनी
मर मिटे हैं सभी
वाह री सादगी
दर्द ज्यों-ज्यों बढ़ा
बढ़ गई बन्दगीसीधे-सरल शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति।
दर्द ज्यों-ज्यों बढ़ा
ReplyDeleteबढ़ गई बन्दगी
लाजवाब श्याम जी...लाजवाब....छोटी बहर में ग़ज़ल लिखना बहुत मुश्किल होता है लेकिन आपने क्या खूब अंजाम दिया है...वाह.
नीरज
हर शेर खूबसूरत है
ReplyDeleteबिन रदीफ़ के भी गजल की खूबसूरती कही से कम नहीं
वीनस केसरी
मुतदारिक में छोटी बहर और ग़ैरमुरद्दफ़: पढ़ कर आनंद आगया, श्याम जी।
ReplyDeleteAchcha likhte hain aap.Badhai.
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