ये भी क्या दिलबरी हुई साहिब ?
घर जला,रोशनी हुई साहिबये भी क्या जिन्दगी हुई साहिबतू नहीं और ही सही साहिबये भी क्या दिलबरी हुई साहिबहै न मुझको हुनर इबादत कासर झुका, बन्दगी हुई साहिबभूलकर खुद को जब चले हम ,तबआपसे दोस्ती हुई साहिबखुद से चलकर तो ये नहीं आईदिल दुखा,शायरी हुई साहिबजीतकर वो मजा नहीं आयाहारकर जो खुशी हुई साहिबतुम पे मरकर दिखा दिया हमनेमौत की बानगी हुई साहिब‘श्याम’ से दोस्ती हुई ऐसीसब से ही दुश्मनी हुई साहिब
फ़ा इलातुन,मफ़ाइलुन, फ़ेलुन
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब
२ १ २ २ १ २ १२ २ २
घर जला,रोशनी हुई साहिब
ReplyDeleteये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब
सच कहा ...आपनें यह भेई कोई जिन्दगी हुई ...?
भूलकर खुद को जब चले हम ,तब
आपसे दोस्ती हुई साहिब
बेहद कड़वा सच है कोई मानें या न मानें
है न मुझको हुनर इबादत का
सर झुका, बन्दगी हुई साहिब
सर उसी के आगे झुकता हैं न जिसे के लिए मन में श्रद्धा हो ....
बहुत सुंदर ...
क्या खूब श्याम साब....क्या खूब,
ReplyDeleteतुम पे मरकर दिखा दिया हमने
मौत की बानगी हुई साहिब
वाह वाह
वाह श्याम भाई वाह आपके तेवरों से मज़ा आ गया।
ReplyDeleteखुद से चलकर तो ये नहीं आई
ReplyDeleteदिल दुखा,शायरी हुई साहिब
जीतकर वो मजा नहीं आया
हारकर जो खुशी हुई साहिब
आपने क्या चार पंक्तियां लिखी
बहुत खूब गज़ल हुई साहिब
कमाल है, बहुत बढ़िया
और ये शेर भी लाजवाब है "खुद से चलकर तो ये नहीं आई/दिल दुखा,शायरी हुई साहिब" सर...
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