इतने नाजुक सवाल मत पूछो
इतने नाजुक सवाल मत पूछो
क्यों हूँ बरबादहाल मत पूछो
बात है गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या अकाल मत पूछो
करो तदबीर अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो
तेग का वार गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो
काम क्या आई घुप अँधेरों में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो
वक्त ने जिन्दगी को बख्शे हैं
कैसे -कैसे बबाल मत पूछो
तुम भला क्या शिकस्त दे पाते
थी ये अपनों की चाल मत पूछो
देखकर खुशगवार मौसम को
मन है कितना निहाल मत पूछो
तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
गम हुऐ क्यों बहाल मत पूछो
कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो
‘श्याम’ से पूछ लो जमाने की
सिर्फ उसका ही हाल मत पूछो
फ़ाइलातुन,मफ़ाइलुन,फ़ेलुन
s1ss,1s1s,ss
तेग का वार गैर का था मगर
ReplyDeleteकिसने छीनी थी ढाल मत पूछो
श्याम जी सिर्फ ये शेर ही नहीं पूरी की ग़ज़ल कमाल की है...बेहतरीन शेर कहें हैं आपने एक से बढ़ कर एक...बहुत बहुत बधाई...
नीरज
तुम तो पहलू में थे मगर फिर भी
ReplyDeleteगम हुऐ क्यों बहाल मत पूछो
--बहुत बेहतरीन!! वाह!!
sjyaam bhaayi aapne kamaal hi kar diyaa....
ReplyDeleteवाह !! वाह !! बहुत बढिया ।
ReplyDeleteऐसी गजल की दिल खुश हो गया
ReplyDelete(श्याम जी आपको शायद याद हो मैंने आपसे एक बार कहाँ था की आप गजल के साथ बहर के रुक्न भी लिख दिया करे हम जैसे सीखने वालों को सीखने का मौका मिलेगा )
यह देख कर बहुत अच्छा लगता है की आपने हमारी इल्तजा कबूल की अब आपसे एक गुजारिश और कर रहा हूँ की हो सके तो बहर का पूरा नाम भी बताया करैं जिससे हमको और भी जानकारी मिले
आपका वीनस केसरी
दिल खुश ग़ज़ल .
ReplyDeleteवाह श्याम साब "तेग का वार गैर का था मगर / किसने छीनी थी ढाल मत पूछो"
ReplyDeleteजबरदस्त
बात है गाँव की तबाही की
ReplyDeleteबाढ़ थी या अकाल मत पूछो
करो तदबीर अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो
क्या बात कही है श्याम जी, बहुत खूब, आपके vocab का तो जवाब नहीं, शब्दों की किसी तरह से कोई कमी नहीं लगती।
वाकई लाजवाब !!
कभी यहां भी आइयेगा - http://tanhaaiyan.blogspot.com
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ReplyDeleteबात है गाँव की तबाही की
बाढ़ थी या अकाल मत पूछो
करो तदबीर अब निकलने की
किसने डाला था जाल मत पूछो
तेग का वार गैर का था मगर
किसने छीनी थी ढाल मत पूछो
काम क्या आई घुप अँधेरों में
जुगनुओं की मशाल मत पूछो
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कैसे गुम हो गया शहर आकर
वो सितारों का थाल मत पूछो