Wednesday, July 29, 2009
गज़ल - श्याम सखा श्याम
बने फिरते थे जो जमाने मे शातिर
पहाड़ों तले आये वे ऊंट आखिर
छुपाना है मुश्किल इसे मत छुपा तू
हुई है सदा ही मुह्ब्बत तो जाहिर
बना क़ैस ,रांझा बना था कभी मैं
मेरी जान सचमुच मैं तेरी ही खातिर
खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
हुआ है खिताब अपना तब से ही काफिर
बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
कहें लोग हरफ़न में उस को तो माहिर
मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर
तेरी खूबियां 'श्याम' सब ही तो जाने
खुशी हो कि हो ग़म तू हरदम है शाकिर
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,फ़ऊलुन
शाकिर _ शुक्रगुजार,हरबात पर गम या खुशी देने पर खुदा का शुक्र करने वाला
Friday, July 24, 2009
Monday, July 20, 2009
गज़ल श्याम सखा
तू आर हो जा या पार हो जा
पर इक तरफ मेरे यार हो जा
या तो सिमट कर रह मेरे दिल में
या फैल इतना, संसार हो जा
जो जुल्म बढ़ जाये हद से ज्यादा
तजकर अहिंसा हथियार हो जा
गुल था शरारत करने लगा जब
तितली ने कोसा जा खार हो जा
सूखा है मौसम, सूखी हूँ मै भी
अब प्यार की तू रसधार हो जा
गर थी तुझे धन की कामना तो
किसने कहा था फनकार हो जा
राधा भी तेरी, मीरा भी तेरी
तू ‘श्याम’ मेरा इस बार हो जा
मुस्तफ़इलुन फ़ा ,मु्स्तफ़इलुन फ़ा
Monday, July 13, 2009
दिल ग़म से बेहाल रहा है
दिल ग़म से बेहाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है
मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है
हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है
दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
हाल ये सालों-साल रहा है
मौत न जाने कैसी होगी
जीवन तो जंजाल रहा है
शक तो है मन में बैठा फिर
घर को क्यों खंगाल रहा है
वक्त का कैसे करूँ भरोसा
चलता टेढ़ी चाल रहा है
हैं उस पर भी गम के साये
जो अब तक खुशहाल रहा है
क्या दिखलाऊँ दिल की दौलत
ग़म से माला -माल रहा है
दूर-दूर ही रहे अँधेरे
जब तक सूरज लाल रहा है
Thursday, July 9, 2009
फ़ुटकर -शे‘र---3
Monday, July 6, 2009
कौन करता नहीं गलतियां-गज़ल
करते तो हैं सभी गलतियां
ढूंढते बस मेरी गलतियां
सामने आएंगी एक दिन
दोस्तो, आपकी गलतियां
तल्खियां ही मुझे दे गईं
थीं बडी मतलबी गलतियां
लूटकर ले गईं चैन ही
ये मरीं दिलजली गलतियां
लडकियां जब हुई थीं जवां
तब हुई मतलबी गलतियां
खौफ़े औलाद ने दी छुडा
आपसे ’श्याम’ जी गलतियां
2
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
ये असर सजा का हुआ
रोज बढ़ती गईं गलतियां
आदमी तो था मैं काम का
आप ने ढूंढ लीं गलतियां
हर कदम,हर दिवस, उम्र भर
साथ मेरे रहीं गलतियां
नासमझ मैं नहीं जब रहा
मुझको अपनी लगीं गलतियां
खूब है आपका ये हुनर
नाम मेरे लिखीं गलतियां
भागने जब लगे ‘श्याम’जी
सामने आ खड़ीं गलतियां
फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
कुछ युवा मित्रों ने गज़ल छंद सीखने की इच्छा ज़ाहिर की है मैने उन्हे लिखा था कि वे प्रारम्भिक ज्ञान‘श्री सतपाल खयाल के ब्लॉग आज की गजल, पर श्री प्राण शर्मा के गज़ल संबंधी लेख पढ़ लें ,फिर कोई जिज्ञासा हो तो मुजे लिखें मैं यथा अपनी सामर्थ्य कोशिश करूंगा उन्ही हेतु यह प्रयोग है आज का
आज की गज़ल हेतु ,एक ही रदीफ़ व बहर की दो गज़ल पोस्ट कर रहा हूं।
जैसा आप देख लेंगे यहां एक गज़ल में काफ़िये में अनुस्वार है,दूसरी में काफ़िये
बिना अनुस्वार के हैं।इससे नव गज़लकारों को काफ़िये की इस विशेष स्थिति के बारे में पता लगेगा
यही नही दूसरी गज़ल का मक्ता यूं बेहतर दिखता
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ हर कहीं गलतियां
मगर यहां काफ़िये हैं नहीं व कहीं अत: गजल की तहजीब के अनुसार आगे आने वाले हर शे‘र में काफ़िये में हीं शब्द अनिवार्य हो जाता अत: इसे बदलकर-वर्तमान रूप देना अनिवार्य हो गया था
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
करते तो हैं सभी गलतियां-गज़ल
करते तो हैं सभी गलतियां-
ढूंढते बस मेरी गलतियां
सामने आएंगी एक दिन
दोस्तो, आपकी गलतियां
तल्खियां ही मुझे दे गईं
थीं बडी मतलबी गलतियां
लूटकर ले गईं चैन ही
ये मरीं दिलजली गलतियां
लडकियां जब हुई थीं जवां
तब हुई मतलबी गलतियां
खौफ़े औलाद ने दी छुडा
आपसे ’श्याम’ जी गलतियां
2
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
ये असर सजा का हुआ
रोज बढ़ती गईं गलतियां
आदमी तो था मैं काम का
आप ने ढूंढ लीं गलतियां
हर कदम,हर दिवस, उम्र भर
साथ मेरे रहीं गलतियां
नासमझ मैं नहीं जब रहा
मुझको अपनी लगीं गलतियां
खूब है आपका ये हुनर
नाम मेरे लिखीं गलतियां
भागने जब लगे ‘श्याम’जी
सामने आ खड़ीं गलतियां
फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
कुछ युवा मित्रों ने गज़ल छंद सीखने की इच्छा ज़ाहिर की है मैने उन्हे लिखा था कि वे प्रारम्भिक ज्ञान‘श्री सतपाल खयाल के ब्लॉग आज की गजल, पर श्री प्राण शर्मा के गज़ल संबंधी लेख पढ़ लें ,फिर कोई जिज्ञासा हो तो मुजे लिखें मैं यथा अपनी सामर्थ्य कोशिश करूंगा उन्ही हेतु यह प्रयोग है आज का
आज की गज़ल हेतु ,एक ही रदीफ़ व बहर की दो गज़ल पोस्ट कर रहा हूं।
जैसा आप देख लेंगे यहां एक गज़ल में काफ़िये में अनुस्वार है,दूसरी में काफ़िये
बिना अनुस्वार के हैं।इससे नव गज़लकारों को काफ़िये की इस विशेष स्थिति के बारे में पता लगेगा
यही नही दूसरी गज़ल का मक्ता यूं बेहतर दिखता
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ हर कहीं गलतियां
मगर यहां काफ़िये हैं नहीं व कहीं अत: गजल की तहजीब के अनुसार आगे आने वाले हर शे‘र में काफ़िये में हीं शब्द अनिवार्य हो जाता अत: इसे बदलकर-वर्तमान रूप देना अनिवार्य हो गया था
कौन करता नहीं गलतियां
हर तरफ ही खड़ीं गलतियां
Friday, July 3, 2009
फुटकर शे‘र-३
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