Thursday, December 30, 2010

है नया अन्दाज दिलबर तेरा--गज़ल

2

जिन्दगी से इक दुआ मांगी थी
मौत कब हमने भला मांगी थी

मौत से हमने दया मांगी थी
याने हाकिम से सजा मांगी थी

रूठ क्यों हमसे गई तू हवा
चुलबुली-सी इक अदा मांगी थी

है नया अन्दाज दिलबर तेरा
बेवफाई दी वफा मांगी थी

खिड़कियाँ सब खोल दीं उसने तो
रोशनी कुछ, कुछ हवा मांगी थी

बख्श दी क्यों मौत ही मौला
हमने तो तुमसे दवा मांगी थी

क्यों गिला तुमसे करेंश्याम हम
क्यों घुटन दे दी हवा मांगी थी
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन, फ़ेलुन









मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

12 comments:

  1. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

    ReplyDelete
  2. आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल ! खास कर ये शेर पसंद आया ...
    मौत से हमने दया मांगी थी
    याने हाकिम से सजा मांगी थी

    आपको और आपके परिवार को नया साल की हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  4. है नया अन्दाज दिलबर तेरा
    बेवफाई दी वफा मांगी थी

    aapko wafa jald mile.

    ReplyDelete
  5. नव वर्ष की बधाई।
    आनंद आ गया।

    ReplyDelete
  6. बहुत उम्दा गज़ल .श्याम जी !
    आपको नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  7. वाह...
    खूबसूरत ग़ज़ल !!!!

    ReplyDelete
  8. मौत से हमने दया मांगी थी
    याने हाकिम से सजा मांगी थी


    अब डॊक्टर भी यह दुआ मांगे तो मरीज़...? :)

    ReplyDelete
  9. वाह जी बहुत खुब धन्यवाद

    ReplyDelete
  10. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है ...आभार
    (अगर आपकी पोस्ट का फॉण्ट फेस (टाईप) चेंज कर लेंगे तो शब्द भी उतने ही खुबसूरत लगेंगे जितने सुन्दर आपने भाव संजोए है )
    हर पल यही है दिल की दुआ आपके लिए
    खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए
    महकी हुई उमंग भरी हो हर इक सुबह
    चाहत के गुल से पथ हो सजा आपके लिए

    ReplyDelete