Tuesday, August 30, 2011

तू आर हो जा या पार हो जा -gazal by shyamskha shyam


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तू आर हो जा या पार हो जा
पर इक तरफ मेरे यार हो जा

या तो सिमट कर रह मेरे दिल में
या फैल इतना, संसार हो जा   

जो जुल्म बढ़ जाये हद से ज्यादा
तजकर अहिंसा हथियार हो जा

गुल था शरारत करने लगा जब
तितली ने कोसा जा खार हो जा

सूखा है मौसम, सूखी हूँ मै भी
अब प्यार की तू रसधार हो जा

गर थी तुझे धन की कामना तो
किसने कहा था फनकार हो जा

राधा भी तेरी, मीरा भी तेरी
तू ‘श्याम’ मेरा इस बार हो जा



 मुस्तफ़इलुन,फा ,मु्स्तफ़इलुन फा



मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/

12 comments:

  1. बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ. आप हमेशा की तरह चुस्त और चौकस हैं. थोड़ी बहर में कुछ खटक दिख रही है, लगता है आपने बहुत जल्दी में इसे दुहराया नहीं.

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  2. या फैल इतना, संसार हो जा

    वाह!! बहुत खूब!!

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  3. सूखा है मौसम, सूखी हूँ मै भी
    अब प्यार की तू रसधार हो जा
    गर थी तुझे धन की कामना तो
    किसने कहा था फनकार हो जा...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! लाजवाब ग़ज़ल!

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  4. सही लि‍खा है या तो आर हो जाओ या पार, मझधार में रहोगे तो डूबोगे ही
    पढ़ि‍ये नई कवि‍ता : कवि‍ता का वि‍षय

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  5. यूँ दिल दर्द समझ रहकर मेरे दिल में
    इस तरह मेरा दर्दे दिल तू यार हो जा

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  6. bahut achhe,badhai

    kishan tiwari

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  7. Excillent
    Andaje-bayan ky khub h
    rajender sahu

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  8. श्याम के नाम का खूंब लाभ उठाया है डॉ. साहब आपने :)

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  9. आप सभी गुणीजनों का आभार-आप द्वारा मिली सराहना मेरे साहित्य सफ़र का संबल बनकर मुझे सदैव मन्जिल की ओर चलते रहने को प्रेरित करती है
    भाई सर्वत जी गज़ल तो बहर से लड़खड़ाई नहीं है,लेकिन आपने ठीक ही लिखा लड़खड़ा मैं गया था टाइप करते हुए वज़्न गलत लिख गया था-
    वज़्न लिखा था मुस्तफ़इलुन-मुस्तफ़इलुन
    जबकि वज़्न है-मुस्तफ़इलुन फ़ा,मुस्तफ़इलुन फ़ा
    जो अब ऊपर भी ठीक कर दिया है।
    भाई चंद्र्मौलेश्वर जी-श्याम का उपयोग करने की काबलियत तो न राधा में थी न मीरा में थी यह काबलियत तो केवल गोपियों में थी अगर आप की बात ठीक है तो मैं सौभाग्यशाली मानूंगा खुद को उस झुंड का अदना सा हिस्सा बनकर भी, वैसे श्याम सखा यानि कलयुग का सुदामा यानि मैं तो उसकी कृपा की प्रतीक्षा में खड़ा हूं जाने कब मेरी सुध लेंगे श्याम
    पुनश्च
    गज़ल कबूलने के लिये आप सभी का आभार

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  10. अच्छा लगा यहाँ आ कर, कई सारी पंक्तियाँ प्रभावित करती हैं|

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  11. बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
    बहुत ही सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल लिखी है.

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  12. बढिया गज़ल ।

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