Thursday, February 12, 2009

अंग सभी पुखराज तुम्हारे

मनमोहक अन्दाज तुम्हारे
सचमुच बेढ़्ब नाज तुम्हारे

मेरे मन के ताजमहल में
निशि-दिन गूंजें साज तुम्हारे

खजुराहो के बिम्ब सरीखे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे

डर कर भागे चांद सितारे
जब देखे आगाज़ तुम्हारे

अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे

सुनना भूले गीत ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे

कल थे हम,हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे

जब तक दिल में ‘श्याम’रखो तुम
हैं तब तक सरताज तुम्हारे

लो गौतम जी-बहर
फ़ेलुन,फ़ेलुन फ़ाल या फ़ेल फ़ऊलुन
२२,२२,२१,१२२

3 comments:

  1. बहुत श्याम साब...बहुत खूब
    "जब तक दिल में ‘श्याम’रखो तुम/हैं तब तक सरताज तुम्हारे "

    वाह,क्या बात है

    सर एक अनुरोध था कि चुँकि आप गज़ल की तकनीक भी बता रहे हैं अपने ब्लौग में तो अपनी गज़ल जब कभी लगायें तो नीचे बहर का भी जिक्र कर दें हम जैसे छात्रों को मजा आ जाये...

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  3. khoob evm khoobsoorat,
    apne isse pehle (shayad bad ke) post main kahin 'musalsal ghazal' ki jaankari di thi, apni 'very limited' janakari se lagat hai ye bhi usi ksherdi ki ghazal hai. Kya main sahi hoon?

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